Book Title: Panchsangraha Part 03
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधव्य-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १६ नामकर्म की हैं। और शेष पन्द्रह घाति प्रकृतियां हैं । ये प्रकृतियां ध्र वोदया इसलिए कहलाती हैं कि उदयकाल के विच्छेद होने से पहले तक इनका निरन्तर उदय रहता है। जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है
मिथ्यात्व प्रकृति पहले मिथ्यादृष्टिगुणस्थाम तक ध्र वोदय वाली है। आगे उदयविच्छेद हो जाने से दूसरे आदि गुणस्थानों में इसका उदय नहीं रहता है तथा शेष मतिज्ञानावरण आदि केवलदर्शनावरण पर्यन्त चौदह घाति प्रकृतियां बारहवें क्षीणमोहगुणस्थान के अन्तिम समय तक ध्र वरूप से उदय में रहती हैं, जिससे वे ध्र वोदया कहलाती हैं।
निर्माण आदि अशुभ नाम पर्यन्त नामकर्म की बारह प्रकृतियां तेरहवें सयोगिकेवलीगुणस्थान के चरम समय तक उदय में रहने और तत्पश्चात् उदयविच्छेद हो जाने से ध्र वोदया कहलाती हैं।
उक्त सत्ताईस प्रकृतियों के अतिरिक्त उदययोग्य एक सौ बाईस प्रकृतियों में से शेष रहीं पंचानवै प्रकृतियां अध्र वोदया हैं । जिनके नाम हैं-स्थिर, अस्थिर, शुभ और अशुभ इन चार के बिना शेष उनत्तर अध्र वबंधिनी प्रकृतियां, मिथ्यात्व के बिना मोहनीय की ध्र वबंधिनी अठारह प्रकृतियां, पांच निद्रायें, उपघातनाम, मिश्रमोहनीय, सम्यक्त्वमोहनीय । इनके अध्र वोदया होने का कारण यह है कि गतिनाम आदि अनेक प्रकृतियां परस्पर विरोधी हैं और तीर्थंकर आदि कितनी ही प्रकृतियों का सर्वदा उदय होता नहीं है। इसीलिये पंचानवै प्रकृतियां अध्र वोदया मानी जाती हैं। __इस प्रकार ध्र व-अध्र व की अपेक्षा उदय प्रकृतियों का विचार करने के पश्चात् सर्वघाति, देशघाति प्रकृतियों को बतलाते हैं।
१ जहाँ कहीं भी ध्रु वोदया नामकर्म की प्रकृतियों का उल्लेख हो वहां इन
बारह प्रकृतियों का ग्रहण करना चाहिए।
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