Book Title: Panchsangraha Part 03
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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itor - प्ररूपणा अधिकार : गाथा ६
श्रेणी के अनुसार ही जीव की गति होती है और उसमें आनुपूर्वी नामकर्म कारण है । 1
विहायोगति - विहायस् -- आकाश द्वारा होने वाली गति विहायोगति कहलाती है ।
इस पर जिज्ञासु प्रश्न करता है
प्रश्न- आकाश के सर्वव्यापक होने से आकाश के सिवाय गति होना सम्भव नहीं है तो फिर विहायस् यह विशेषण किसलिए ग्रहण किया गया है । क्योंकि व्यवच्छेद - पृथक् करने योग्य वस्तु का अभाव है । विशेषण का प्रयोग प्रायः एक वस्तु से दूसरी वस्तु को अलग बताने के लिए किया जाता है और यहाँ आकाश के सिवाय अन्यत्र गति संभव नहीं होने से कोई व्यवच्छेद्य नहीं है । इसलिये विहायस् यह विशेषण व्यर्थ है ।
उत्तर - यहाँ विहायस् विशेषण नामकर्म की प्रथम प्रकृति गतिनामकर्म से पार्थक्य बतलाने के लिए प्रयुक्त हुआ है । क्योंकि यहाँ मात्र गतिनामकर्म इतना ही कहा जाता तो शंका हो सकती थी कि पहले गतिनामकर्म कहा जा चुका है तब यहाँ पुनः किसलिए कहा है । अतः इस शंका का निवारण करने के लिए विहायस् यह सार्थक विशेषण दिया गया है । जिससे यह स्पष्ट हो सके कि जीव चलता है, गति करता है, उस गति में विहायोगति नामकर्म कारण है । परन्तु नारकादि पर्याय होने में हेतु नहीं है ।
उसके दो भेद हैं- (१) शुभ विहायोगति, (२) अशुभ विहायोगति । जिस कर्म के उदय से हंस, हाथी और बैल जैसी सुन्दर गति - चाल प्राप्त हो उसे शुभ विहायोगति नामकर्म और जिस कर्म के उदय से गधा,
१ दिगम्बर साहित्य में आनुपूर्वी नामकर्म का लक्षण इस जिसके उदय से विग्रहगति में जीव का आकार पूर्व रहे - पूर्वशरीराकाराविनाशो यस्योदयाद् भवति
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प्रकार बताया है-
शरीर के समान बना तदानुपूर्व्यं नाम ।
- दि. कर्मप्रकृति,
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