Book Title: Pakshika Sutram
Author(s): Yashodevsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

View full book text
Previous | Next

Page 38
________________ पाक्षिकसू० महन्तकलयलो ओहा(उद्धा)इओ, तओ सेणिएण भणियं-भयवं किमेयन्ति। भगवया भणियं-तस्सेव विसुज्ज्झमाणपरिणा- वृत्तिः मस्स केवलनाणं समुप्पण्णं, तओ देवो से महिमं करेतित्ति ।” एवं प्रसन्नचन्द्रो द्रव्यव्युत्सर्गभावव्युत्सर्गयोरुदाहरणं ॥१२॥ विज्ञेय इति ॥ साम्प्रतं प्रागुपन्यस्तप्रत्याख्यानभेदाः प्रदर्श्यन्ते तत्र गाथा “सीयालं भङ्गसयं, पञ्चक्खाणंमि जस्स उवलद्धं । सो खलु पञ्चक्खाणे,कुसलो सेसा अकुसलाउ"एतच्च प्रत्याख्यानभेदपरिमाणं साधूञ् श्रावकांश्चाश्रित्यामुनोगयेन भावनीयं। "तिन्नि तिया तिन्नि दुया, तिन्निकेक्वाय होन्ति जोगेसु । ति दु एक्कं, ति दु एकं, ति दु एक्कं चेव करणाई ॥१॥ पढमे दलब्भइ एगो, सेसेसु पएसु तिय तिय तियं च ।दो नव तिय दोनवगा, तिगुणिय सीयालभङ्गसयं"॥२॥स्थापना चेयोभावना | त्वियं । “न करेइ न कारवेइ करेन्तमन्नं न समणुजाणइ मणेणं |३ ३ ३ २२२१११ योगः। वायाए कारणं एस एक्को" अत्राह न करेइच्चाइ तिगं गिहिणो कह होइ देसविरयस्स । भन्नइ विसयस्स बहिं पडिसेहो अणुमईए |३ २ १/३ २/१/३/२/१ करणानि वि ॥१॥ केई भणंति गिहिणो, तिविहं तिविहेण नत्थि संवरणं । तं |१|३ ३ ३९ ९३ ९९ लध्वम् 8/न जओ निद्दिड, पन्नत्तीए विसेसे॥२॥तो कह णिज्जुत्तीए,ऽणुमइनिसेहोत्ति सेसविसयम्मि। सामण्णे वा नत्थि उ, तिविहं तिविहेण को दोसो ॥३॥ पुत्ताइसंतइनिमित्त, मित्तमेगारसिं पवन्नस्स । पंति केइ गिहिणो, दिक्खाभिमुहस्स|॥ १२॥ तिविहंपि ॥४॥' 'आह कहं पुण मणसा, करणं कारावणं अणुमई य । जह वइतणुजोगेंहि, करणाई तह भवेमणसा ॥५॥ तदहीणत्ता वइतणुकरणाईण (मनोऽधीनत्वाद्वचनतनुकरणादीनामिति) म(णं अ)हव मणकरणं । सावजजोगमणणं पन्नत्तं | Jain Education in For Private & Personel Use Only Sainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170