Book Title: Pakshika Sutram
Author(s): Yashodevsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

View full book text
Previous | Next

Page 124
________________ पाक्षिकसू० वृत्तिः स्यैतदपि प्रियं भवतीति १८ अप्पडिसुणणे त्ति सेहे रायणियस्स वाहरमाणस्स अपडिसुणेत्ता भवइ आसायणा सेहस्स, सामान्येन दिवसतोऽप्रतिश्रोता भवति १९ खद्धत्तिय त्ति सेहे रायणियं खद्धं २ वत्ता भवइ आसायणा सेहस्स, इह च खद्धं २ ति वड्डुरसद्देणं खरकक्कसनिहरं भणइ २० तत्थगए त्ति सेहे रायणियस्स वाहरमाणस्स जत्थगए सुणेइ तत्थगए चेव उल्लावं देइ आसायणा सेहस्स २१ किंति सेहे रायणिए आहुए किंति वत्ता भवइ आसायणा सेहस्स, किन्ति किं भणसीत्यर्थः । भणियवं च एयं(व) मत्थएण वन्दामि २२ तुमं ति सेहे रायणियं तुमंतिवत्ता भवइ आसायणा सेहस्स, को तुम चोइत्तए २३ तज्जायत्ति सेहे रायणियं तजाएणं पडिहणित्ता भवइ आसायणा सेहस्स, तजाएणं ति कीस अजो गिलाणस्स न करेसि, भणइ, कीस तुम न करेसि, आयरिओ भणइ, तुमं आलसिओ, सो भणइ, तुम चेव आलसिओ इत्यादि २४ नो सुमणेत्ति सेहे रायणियस्स कहं कहेमाणस्स नो सुमणसे भवइ आसायणा सेहस्स, इह च नो सुमणसे इति ओहयमणसङ्कप्पे अच्छइ, नाणुवूहइ कह, अहो सोहणं कहियं ति २५ नो सरसित्ति सेहे रायणियस्स कहं कहेमाणस्स नो सुमरसित्ति वत्ता भवइ आसायणा सेहस्स, इह च नो सुमरसित्ति न सरसि तुमं एयं अत्थं न एस अत्थो एवं भवइ २६ कहं छेत्तत्ति सेहे रायणियस्स कहेमाणस्स तं कहं अच्छिन्दित्ता भवइ आसायणा सेहस्स, अच्छिन्दित्तत्ति भणइ अहं कहेमि २७ परिसं भेत्तत्ति सेहे रायणियस्स परिसं भेत्ता भवइ आसायणा सेहस्स, इह च परिसं भत्तत्ति एवं भणइ भिक्खावेलासमुद्दिसणवेलासुत्तत्थवेलाउ भिन्दइ २८ अणुठियाए कहेत्ति सेहे रायणियस्स कहं कहेमाणस्स तीसे परिसाए अणुठियाए अघोच्छिन्नाए अबोगडाए त्ति दोच्चंपि तचंपि तमेव कहं कहेत्ता भवइ आसायणा सेहस्स, ॥ ५५ ॥ XXX Jain Education Inter For Private & Personel Use Only Amainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170