Book Title: Pakshika Sutram
Author(s): Yashodevsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 126
________________ वृत्तिः पाक्षिकसू०एवं तिदण्डविरओ तिगरणसुद्धो तिसल्लनीसल्लो। तिविहेण पडिकन्तो रक्खामि महत्वए पञ्च ॥२३॥ एवं प्रागुक्तलेश्यादिस्थानवत्रिदण्डवरतो दण्ड्यते चारित्रैश्वर्यापहारतो निःसारीक्रियते एभिरात्मेति दण्डास्त्रयश्च ते ॥५६॥ दुष्प्रयुक्तमनोवाकायभेदाः त्रिसंख्या दण्डास्तेभ्यो विरतो निवृत्तस्त्रिदण्डविरतः, उदाहरणानि चात्र मनोदण्डे कोङ्कणार्यः “सो किर एगया महावाए वायन्ते उड्ढजाणू अहोसिरो चिन्तन्तो चिट्ठइ, साहुणो य अहो खन्तो सुहज्झाणोवगओत्ति वन्दन्ति, नय किंचि पडिवयणं देइ, चिरेण संल्लावं देउमारद्धो, साइहिं पुच्छिओ, किमेच्चिरं झाइयन्ति, सो भणइ, संपयं | खरतरो मारुओ वायइ, जइ ते मम पुत्ता इयाणि वल्लराणि क्षेत्राणीत्यर्थः पल्लीवेज्जा तओ तेसिं वासारत्ते सरसाए भूमीए सुबहू सालिसम्पया होज्जा एयं मए चिन्तयं, तओ आयरिएहिं वारिओ ठिओ, एवमाइ जमसुहं मणेणं चिन्तेइ सो मणदण्डो १ वाग्दण्डोदाहरणमिदं “एगो साहू सन्नाभूमीओ आगओ अविहीए आलोएइ जहा अमुगत्थ सूयरविन्दं दिट्ठन्ति, तं सोऊण लुद्धयपुरिसेहिं तत्थ गन्तूण तं मारियं ति, एवमाइ सावजभासा वइदण्डोत्ति" कायदण्डोदाहरणं "चण्डरुद्दो आयरिओ, उजेणिं बाहिरगामाओ अणुजाणपेक्खओ यात्रादर्शनार्थमित्यर्थः आगओ, सो अईवरोसणो, तत्थ य समोसरणे गणियाघरपरिभूओ जाइकुलाइसंपन्नो इन्भदारओ समागओ, सो भणति, पचयामित्ति, तत्थ 8 अण्णेहिं साहुहिं असद्दहन्तेहिं चण्डरुदस्स सगासे पेसिओ "कलिणा कली घस्सउत्ति" तओ सो तस्स उवडिओ, तेण सो ताहे चेव लोयं काउं पवाविओ, पच्चूसे सयणभया गामं वच्चंताणं पुरओ सेहो, पिट्ठओ चण्डरुद्दो, आवडिओ रुडो, ६ सेहं दण्डएण मत्थए आहणेइ, कहं ते पत्थरो न दिह्रोत्ति, सेहो सम्म सहइ, आवस्सयवेलाए रुहिरावलित्तो दिह्रो, चण्ड-15 ॥५६॥ Jain Education Digital For Private & Personel Use Only Oljainelibrary.org

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