Book Title: Pakshika Sutram
Author(s): Yashodevsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 153
________________ भगवतो वद्धमानस्वामिनः आसन्निति । उक्त कालिक, तदभिधानाच्चावश्यकव्यतिरिक्त, तद्भणनाच्चाङ्गबाह्यं श्रुतमुक्तम् । सांप्रतमङ्गप्रविष्टश्रुतसमुत्कीर्तनायाहहै| नमो तेसिं खमासमणाणं जेहिं इमं वाइयं दुवालसङ्गं गणिपिडगं भगवन्तं तंजहा-आयारो सूयगडो ठाणं समवाओ विवाहपन्नत्ती नायाधम्मकहाओ उवासगदसाओ अन्तगडदसाओ अणुहत्तरोववाइयदसाओ पण्हावागरणं विवागसुयं दिट्ठीवाओ १२ सवहिपि एयंमि दुवालसङ्गे गणिपिडगे है भगवन्ते ससुत्ते सअत्थे सगन्थे सनिजुत्तिए ससङ्गहणिए जे गुणा वा भावा वा अरहन्तेहिं भगवन्तेहिं पन्नत्ता वा परूविया वा ते भावे सद्दहामो पत्तियामो रोएमो फासेमो अणुपालेमो ते भावे सद्दहन्तेहिं पत्तियन्तेहिं रोयंतेहिं फासन्तेहिं अणुपालन्तेहिं अन्तोपक्खस्स जं वाइयं पढियं परियटियं पुच्छियं अणुपेहियं अणुपालियं तं दुक्खक्खयाए कम्मक्खयाए मोक्खाए बोहिलाभाए हासंसारुत्तारणाए त्तिकट्ठ उवसंपजित्ता णं विहरामि । अन्तोपक्खस्स जं न वाइयं न पढियं न परि-11 यट्टियं न पुच्छियं नाणुपेहियं नाणुपालियं सन्ते बले सन्ते वीरिए सन्ते पुरिसकारपरक्कमे तस्स Jain Education For Private Personel Use Only jainelibrary.org

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