Book Title: Pakshika Sutram
Author(s): Yashodevsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
View full book text
________________
वियणं अहियासेई तहिं सम्मं । ३ । नय मणदुक्कडमुप्पन्न तस्स झाण म्मि निच्चलमइस्स । दट्टणवि य विलीयं इय मणगुत्ती करेयवा । ४ । तथा वाचो ऽकुशलवचनस्य निरोधेन कुशलस्य चोदीरणेन गुप्तिर्वाग्गुप्तिः “ वइगुत्तीए साहू सन्नायगपल्लगच्छए दहूं। चोरग्गहसेणावइविमोइओ भणइ मा साह । १। चलिया य जन्नजत्ता सन्नायग मिलिय अंतरा चेव । मायपियभायमाई सोवि नियत्तो समं तेहिं । २ । तेणेहिं गहियमुसिया दिहे ते बेन्ति सो इमोसाहू। अम्हेहिं गहियमुक्को तो बेई अम्मया तस्स । ३ । तुम्हेहिं गहिय मुक्को आम आणेहि बेइ तो छुरियं । जं छिन्दामि थणन्ती किं ति सेणावई भणइ ।४। दुजम्मजाय एसो दिहा तुब्भे तहवि नवि सिह। किह पुत्तोत्ति अह ममं किह न वि सिलु तु धम्मकहा। ५। आउट्टो उवसन्तो मोक्का मजपि तं सि माइत्ति । सबं समप्पियं से वइगुत्ती एव कायवा ।।" तथा कायस्य गोपनं कायगुप्तिः प्रयोजनाभावे करचरणाद्यवयवसलीनता, प्रयोजनोत्पत्ती तु स्थानादिषु सम्यक्वृत्तिरित्यर्थः । “काइयगुत्ताहरणं अद्धाणपवन्नगे जहा साहू। आवासियम्मि सत्थे न लहइ तहिं थण्डिलं किञ्चि । ३ । लद्धं चणेण कहवि एगो पाओ जहिं पइहाइ । तहियं ठिएगपाओ सबं राइं तहिं थ(घ)हो।२।नय ठवियं किंचि अत्थडिलंमि होयत्वमेव गुत्तेणं । सुमहन्भएवि अहवा साहु न भिन्दे गई एगो। ३ । सकपसंसा असदहाण देवागमो विउबइ य । मण्डुक्कलिया साहू जयणा सो(ए) सङ्कमे सणियं । ४ । हत्थी विउविओ जा आगच्छइ मग्गओ गुलुगुलिन्तो। नय गइभेयं कुणइ करिणा हत्थेण उच्छूढो। बेइ पडन्तो मिच्छामिदुकडं जिय विराहियामोत्ति । ५। एता अष्टापि प्रवचनमातरो दृष्टा उपलब्धाः कैरित्याह-अष्ट
१ षट्पदीयं गाथा वा सार्धा
Jain Education
For Private & Personel Use Only
Kinaw.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170