Book Title: Pakshika Sutram
Author(s): Yashodevsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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पाक्षिकसू०
॥ ४६ ॥
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| विधा अष्टप्रकारा निष्ठिताः क्षयं गता अर्थाः प्रक्रमात् ज्ञानावरणादिपदार्था येषां ते तथा तैरष्टविधनिष्ठितार्थैर्जिनैरित्यर्थः । वृत्तिः उवसंपन्नो जुत्तो इत्यादि पूर्ववदिति ॥ तथा
नव पावनियाणाई संसारत्था य नवविहा जीवा । परिवज्जन्तो गुत्तो रक्खामि महवए पंञ्च ॥
नव नवसंख्यानि पापानि पापनिबन्धनानि निदानानि भोगादिप्रार्थनालक्षणानि पापनिदानानि तानि परिवर्ज - यन्निति योगः, तानि चामूनि लेशतः “निग्गंथो वा निग्गन्थी वा नियाणं करेइ जहा सक्खं न मे देवा देवलोगा वा दिट्ठाता इमे चैव महिड्डिया रायाणो देवा, ता जइ इमस्स तवनियमबंभ चेरस्स फलमत्थि ताहमवि आगमिस्साए राया भवित्ता ओराले माणुस्से भोगे भुखमाणे विहरिज्जामि, तओ नियाणकडे देवलोगं गच्छेज्जा, तओ चुयस्स नियाणाणुरूवलद्धद्वाणस्स तस्स कोइ समणाई धम्म माइकूखेज्जा ! हन्ता आइक्खेज्जा, से धम्मं पडिवज्जेज्जा ! नो इणमट्ठे समट्ठे दुल्लभवोहिए भवइ १ | केई धम्मं सोच्चा निक्खन्ते अणगारे परीसहपराइए चिन्तेइ, राया बहुचिन्ते बहुवावारे भवइ, तो जे इमे उगाइपुत्ता विभवसंपन्ना ते पासित्ता नियाणं करेइ, जइ मे इमस्स तवनियमबम्भचेरवासस्स फलमत्थि, तो उग्गाइपुत्तो विभवसंपन्नो भविज्जा, तओ देवलोगपच्चायाओ उग्गाइकुले जाओ नियाणाणुरुवे भोगे भुञ्जमाणो विहरइ, सो धम्ममाइखिज्जमानंपि नो पडिवज्जइ जाव दुलभवोहिए भवइ २ | एवं निग्गन्धीवि, निग्गन्धो नियाणं करेति, पुमं बहुवावारो सङ्गामाइसु दुक्करकारी य, ता अलं मे पुरिसभावेण, अन्नजंमेहं इत्थिया भवेज्जा, एस वि नियाणाणुरुवो उप्पज्जइ, धम्मं नो पडिवज्जर दुलहबोहिए भवइ ३। निग्गन्धीवि उग्गादिपुत्तं पासित्ता नियाणं करेइ इत्थी णं असमत्था, एगागिणी गाम
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॥ ४६ ॥
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