Book Title: Pakshika Sutram
Author(s): Yashodevsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 53
________________ Jain Education कालतो मृषावादो दिवा वा दिवसेऽधिकरणभूते विषयभूते वा रात्रौ वा रजन्यामाधारभूतायां विषयभूतायां वा ॥ ३ ॥ भावतो मृषावादो रागेण वा मायालो भलक्षणेन वा तत्र मायया अग्लानोऽपि ग्लानोऽहं ममानेन कार्यमिति वक्ति, भिक्षाटन परिजिहीर्षया वा पादपीडा ममेति भाषते इत्यादि । लोभेन तु शोभनतरान्नलाभे सति प्रान्तस्यैषणीयत्वेऽप्यनेषणीयमिदमिति ब्रूते इत्यादि । द्वेषेण वा क्रोधमानस्वरूपेण, तत्र क्रोधेन वदति त्वं दास इत्यादि, मानेन तु अबहुश्रुत एव बहुश्रुतोऽहमित्यादि । उपलक्षणत्वाद्भयहास्यादयोऽपीह द्रष्टव्याः तत्र भयात्किञ्चिद्वितथं कृत्वा प्रायश्चित्तभयान्न कृतमित्यादि भाषते एवं हास्यादिष्वपि वाच्यमिति |४ | द्रव्यभावपदप्रभवा चतुर्भङ्गिका चात्र द्रष्टव्या सा पुनरियं “ दओ नामेगे मुसावाए नो भावओ, भावओ नामेगे मुसावाए नो दबओ, एगे दबओवि भावओवि, एगे नो दबओ नो भावओ । तत्थ कोइ कञ्चि हिंसुज्जुओ भणइ इओ तए पसुमिगाइणो वोलिन्तगा दित्ति ? सो पुण. दयाए दिट्ठेहिवि भणइ न दिट्ठत्ति एस दवओ मुसावाओ न भावओ । अवरो मुसं भणीहामित्ति परिणओ सहसा सच्चं भणइ एसो भावओ न दओ । अवरो मुसं भणीहामित्ति परिणओ मुसं चेव भणई एस दवओवि भावओवि । चरिमभंगो पुण सुन्नोति ॥ जं मए इमस्स धम्मस्स केवलिपन्नत्तस्स अहिंसालक्खणस्स सच्चाहिट्टियस्स विणयमूलस्स खंतिप्पहाणस्स अहिरण्णसोवन्नियस्स उवसमपभवस्स नंवबंभचेरगुत्तस्स अपयमाणस्स भिक्खावित्तिस्स | कुक्खी संबलस्स निरग्गिसरणस्स संपक्खालियस्स चत्तदोसस्स गुणग्गाहियस्स निaियारस्स निवि For Private & Personal Use Only w.jainelibrary.org

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