Book Title: Pakshika Sutram
Author(s): Yashodevsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 72
________________ वृत्तिः पाक्षिकसू० ॥ २९॥ MOCRACOCCARR अणोद्दवणयाए महत्थे महागुणे महाणुभावे महापुरिसाणुचिन्ने परमरिसिदेसिए पसत्थे तं दुक्ख- क्खयाए कम्मक्खयाए मोक्खाए बोहिलाभाए संसारुत्तारणाए त्तिकटु उवसंपजित्ताणं विहरामि। छठे भंते वए उवडिओमि सबाओ राईभोयणाओ वेरमणं ॥ हा एतत्सूत्रं सकलमपि प्राग्वत्, एतच्च रात्रिभोजनव्रतं प्रथमचरमतीर्थकरतीर्थयोः ऋजुजडवक्रजडपुरुषापेक्षया मूलगुणत्वख्यापनार्थं महाव्रतोपरि पठितं, मध्यमतीर्थकरतीर्थे पुनः ऋजुप्राज्ञपुरुषापेक्षयोत्तरगुणवर्ग इति । दोषाश्चेह रात्रिभोजिनां पिपीलिकाशलभादिसत्त्वविनाशादयो वाच्याः । इत्युक्तं षष्ठं व्रतमथ समस्तवताभ्युपगमख्यापनायाह । इच्चेयाइं पञ्च महत्वयाइं राईभोयणवेरमणछट्ठाई अत्तहियट्टयाए उवसंपज्जित्ताणं विहरामि। इत्येतान्यनन्तरोदितानि पञ्च महाव्रतानि रात्रिभोजनविरमणषष्ठानि किमित्याह-अत्तहिययाएत्ति आत्मने जीवाय हितो मोक्षस्तदर्थं आत्महितार्थाय, अनेनान्यार्थ तत्त्वतो बताभावमाह, तदभिलाषानुमत्या हिंसादावनुमत्यादिभावात् । उप सामीप्येन संपद्याङ्गीकृत्योपसम्पद्य विहरामि सुसाधुविहारेण वर्तेऽहं, तदभावेऽङ्गीकृतानामपि बतानामभावप्रसङ्गादिति ॥ कृता महाव्रतोच्चारणा, साम्प्रतं महाव्रतानामेव यथाक्रममतिचारानुपदर्शयितुमाह अप्पसत्था य जे जोगा परिणामा य दारुणा।पाणाइवायस्स वेरमणे एस वुत्ते अइकमे।रूपकम्। अप्रशस्ता हिंसाहेतुत्वादसुन्दराश्चशब्दो वक्ष्यमाणपदापेक्षया समुच्चयार्थः, ये केचन योगा अयतचक्रमणभाषणादयो । *55550% ॥२९। Jain Education For Private & Personal Use Only Mainelibrary.org

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