Book Title: Pakshika Sutram
Author(s): Yashodevsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 41
________________ जं मए इमस्स धम्मस्स केवलिपन्नत्तस्स अहिंसालक्खणस्स सच्चाहिहियस्स विणयमूलस्स खंतिप्पहादणस्स अहिरन्नसोवन्नियस्स उवसमपभवस्स नवबंभचेरगुत्तस्स अपयमाणस्स भिक्खावित्तिस्स कुक्खी-| संबलस्स निरग्गिसरणस्स संपक्खालियस्स चत्तदोसस्स गुणगाहियस्स निवियारस्स निवित्तीलक्खणस्स पंचमहत्वयजुत्तस्स असंनिहिसंचयस्सअविसंवाइस्स संसारपारिगामिस्स निवाणगमणपज्जवसाणफलस्स पुविं अण्णाणयाए असवणयाए अबोहिए अणभिगमेणं अभिगमेण वा पमाएणं रागदोसपडिबद्धयाए । वालयाए मोहयाए मंदयाए किड्डयाए तिगारवगरुयाए चउक्कसाओवगएणं पंचिंदिओवसट्टेणं पडुपन्न-18 भारियाए सायासोक्खमणुपालयंतेणं इहं वा भवे अन्नेसु वा भवागहणेसु पाणाइवाओ कओ वा 8 काराविओवा कीरंतो वा परेहिं समणुन्नाओ तं निंदामि गरिहामि तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं : अत्र च यो मयास्य धर्मस्य केवलिप्रज्ञप्तादिद्वाविंशतिविशेषणविशेषितस्य पूर्वमज्ञानतादिभिश्चतुर्भिः प्रमादादिभिश्चैकादशभिः कारणैः प्राणातिपातः कृतस्तं निन्दामीत्यादिसंबन्धो द्रष्टव्यः। जन्ति विभक्तिव्यत्ययाद्यःप्राणातिपात इति योगः। भाषामात्रे वा यदितिपदं व्याख्येयं । मयेति प्रतिक्रामकसाधुरात्मानं निर्दिशति । अस्य स्वहृदयप्रत्यक्षस्य धर्मस्य प्रक्र-15 |मात्सर्वचारित्रात्मकस्य, अत्र च 'जंपि य मए इमस्स धम्मस्स' तथा 'जपि य इमं अम्हेहिं इमस्स धम्मस्सत्यादि पाठान्त MSROCTORSCORRECRUCIALRAM MORECAUCRACCOCALCULAG Jain Education a l For Private & Personel Use Only OMjainelibrary.org

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