Book Title: Pakshika Sutram
Author(s): Yashodevsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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Jain Education
दुम्मुहेण भणियं-कुतो एयस्स धन्नया, जो असजायबलं पुत्तं रज्जे ठविऊण पबइओ, सो तवस्सी दाइएहिं परिभविज्जइ, नगरं च उत्तमं ख (मक्ख ) यं पडिवन्नं, ता एवमणेण बहुलोगो दुक्खे ठविओ, ता सबहा अदट्ठवो एसोति । ताहे तस्स रायरिसिणो कोवो जाओ, चितियं चाणेण को मम पुत्तस्स अवकरेइत्ति, तू (नू) णममुगतो ता किं तेण एयावत्थंगओवि णं वावाएमि । माणससङ्गामेण रोद्दज्झाणं पवन्नो । हत्थिणा हस्थि आसेण आसं वावापत्ति विभासा, इत्थन्तरे सेणिओ भगवओ वन्दिउं निग्गच्छइ, तेण दिट्ठो वन्दिओ य तेण ईसिंपि (न) निझाइओ, तओ सेणिएण चिन्तियं, सुक्कज्झाणोवगओ भगवं ता इदिसंमि झाणे कालगयरस का गई भवइत्ति भगवन्तं पुच्छिस्सामि । तओ गओ वन्दिऊण पुच्छिओ अणेण भगवं, जम्मि झाणे ठिओ मए वन्दिओ पसन्नचन्दो तम्मि मयस्स कहिं उववाओ भवइ ? । भगवया भणियं अहे सत्तमढवीए । तओ सेणिएण चिन्तियं हा किमेयंति । पुणोवि पुच्छिस्सं । एत्थन्तरम्मि पसन्नचन्दस्स माणसे सङ्ग्रामे पहाणनायगेणं सहावडियस्स असिसत्तिचक्ककप्पणीपमुहाई खयं गयाई पहरणाई तओ णेण सिरत्ताणेण वावाएमित्ति परामुसियमुत्तमङ्गं जाव लोयं कयं पासति तओ संवेगमावन्नो अञ्च्चन्तविसुज्झमाणपरिणामेण अत्ताणं निन्दिउं पयट्टो, समाहियमणेण पुणरवि सुक्कज्झाणं । एत्थन्तरंमि सेणिएण भगवं पुणोवि पुच्छिओ जारिसे ज्झाणे संपइ पसन्नचन्दो वट्टइ तारिसे मयस्स कहिं उववाओ ? भगवया भणियं अणुत्तरसुरेसुं । तओ सेणिएण भणियं-पुढं किमन्नहा परूवियं उयाहु मया अन्नहावहारियंति | भगवया भणियं नन्नहा परुवियं नावि तए अन्नहांवगयं । तओ सेणिएण भणियं कहमेयन्ति । तओ भगवया सबो वृत्तंतो साहिओ । एत्थन्तरंमि य पसन्नचन्दमहरिसिणो समीवे दिवो देवदुन्दुहिसणाहो
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