Book Title: Niti Shiksha Sangraha Part 01
Author(s): Bherodan Jethmal Sethiya
Publisher: Bherodan Jethmal Sethiya

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Page 17
________________ नीति-शिक्षा-संग्रह (13) करने का मौका मिल जाता है / जिससे काम निकालना है, उसका तो विनय करना ही चाहिए। 6 ज्ञानी अज्ञानी का बर्ताव ऊपर से समान होने पर भी परिणाम में भिन्नता रहती है / अज्ञानी का बर्ताव बदलता रहता हैं; लेकिन ज्ञानी का एकसा रहता है / ___7 ज्ञानी अपनी प्रकृति दूसरे के अनुकूल बना लेता है / कोई ज्ञान लेने आता है, तब गुरु के समान आचरण करता हैं / दूसरे की ज्ञान लेने की इच्छा न होने पर उस को ज्ञान देने की इच्छा होती है, तब शिष्य के समान आचरण करता है / मूर्ख के साथ मूर्ख बन जाता है, उसको कोई पहिचान नहीं सकता / 8 अन्धकार और प्रकाश बना ही रहता है / कर्मके अनुसार वृत्ति में हेर फेर होता ही रहता है, लेकिन ज्ञानवान् उपदेश द्वारा उसे दूर करते हैं। 6 वस्तु- स्वभाव का ज्ञान होने से ज्ञानी खेद नहीं करता। प्रकृति के नियम को न जाननेवाला ही दुःखी होता है / 10 गुण का नाश नहीं होता; किन्तु निमित्त पाकर उस में परिवर्तन हो जाता है। 11 डालियों और पत्तों पर पानी न सोंचकर जड़ में ही पानी सींचना चाहिए, इस से डाली और पत्ते स्वयं हरे भरे रहेंगे। इसी तरह आत्म-स्वरूप की प्राप्ति के लिए सब क्रिया करो,

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