________________ मीति-शिक्षा-संग्रह (63) कहा-सत्य मेरी माता है, ज्ञान पिता है, धर्म भाई है, दया मित्र है, शान्ति स्त्री है और क्षमा पुत्र है / इन छह कुटुम्बियों से मैं सदा सुख में मग्न रहता हूं। उपदेश मणि-मालो. 1 शरीर नश्वर है, धन सम्पत्ति अनित्य है , मृत्यु समीप खड़ी है. इस लिए हमेशा धर्म के कामों में दत्तचित्त होना चाहिये। 2 धर्म में अतिप्रोम, मुख में मिठास, दान में उत्साह, मित्र के साथ निश्छलता, गुरु का विनय , अन्तःकरण में गम्भीरता, आचार में पवित्रता, गुण में अनुराग , शास्त्रों में विशेषज्ञता, रूप में सुन्दरता, और वीतराग देव में भक्ति, ये गुण पुण्यवान् में ही पाये जाते हैं। 3 प्रवास में विद्या मित्र (हितकारी) है ! घर में स्त्री मित्र है, रोगीका औषधि मित्र है, और अन्तकाल में प्राणी का धर्म मित्र है / 4 विना विचारे व्यय करने वाला , अनाथ होकर भी कलह में प्रीति रखने वाला, सब जगह आतुरता-व्याकुलता धारण करने वाला , शीघ्र अवनति के गढे में गिरता है / 5 बुद्धिमान् आहार की चिन्ता न करे , केवल धर्म की चिन्ता करे; क्योंकि जन्म से ही प्राणियों के साथ आहार उत्पन्न