Book Title: Niti Shiksha Sangraha Part 01
Author(s): Bherodan Jethmal Sethiya
Publisher: Bherodan Jethmal Sethiya

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Page 103
________________ नीति-शिक्षा-संग्रह 78 किसी के दुःख, बीमारी, आपत्ति में मृत्यु के समय विना बुलाये ही चले जाओ- बुलाने का मार्ग मत देखो / शत्रुता भूनकर शत्रु के दुःख में शामिल हो जाओ। - 76 बाजार से लेकर मिठाई तथा चटपटी चीजें बाज़ार में मत खाओ। 80 यदि दूसरे के पढ़ने के लिए लिख रहे हो तो लिखते समय उस की सुविधाओं का ध्यान रक्खो, अक्षर साफ़ साफ़ लिखो,ताकि उसे पढ़ने में कठिनाई न हो; बहुत जल्दी से बुरे बुरे अक्षर लिखना प्रायः लोग अपनी पंडिताई समझते हैं; किन्तु यह भूल है / अक्षर साफ सुथरे और सुवाच्य होने चाहिये, ताकि पढ़ने वाले का मन पढ़ने को चाहे / 81 सभा, समाज में अपनी इज्जत, पद और उम्र के अनुसार पहिले ही से अपना स्थान देखकर बैठो। 82 अपनी भार्या को मत मारो, आप शुरू से ही ऐसा वर्तात करो, जिस से वह नौबत ही न आवे, तथा स्त्रियों को भी चाहिये कि वे अपने पति की आज्ञानुसार चलकर उसके मन को हमेशा प्रसन्न रखें, क्योंकि जिस घर में भार्या अपने पति को प्रसन्न रखती हैं- और पति अपनी पत्नी को प्रसन्न रखता है, उस घर में सदा सुख-शांति का निवास रहता है। .. 83 किसी बात का हठ मत करो, घर में भाई-बन्धुओं में, समाज में,जाति में, कलह उत्पन्न करने वाली बात को न उठायो। किसी की निन्दा न करो। समाज या देश में अशान्ति उत्पन

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