________________ सेठियाजैनप्रन्यमाला 106 जैसे नदियां दूसरों के हितके लिये ही बहती हैं, गायें अपने दूध से दूसरों का पोषण करती हैं, वृक्ष अपने फलों से दूसरों के ही प्राणों की रक्षा करते हैं; वैसे ही सज्जनों का तन मन और धन परोपकार के लिए ही होता है। 107 हे परम पिता परमात्मा! हम आंखों से साधुमहात्माओं के दर्शन करें , कानों से भगवद्भजन और दूसरों की प्रशंसा सुनें, मुख से हित और प्रियकर वचन बोले, शरीर से दीन दुखियों तथा साधुपहात्माओं की सेवा करें। 108 हे निरंजन देव ! हमारी ऐसी बुद्धि हो, जिससे संसार के प्राणीमात्र के साथ मैत्रीभाव रहे, विद्वानों और गुणवानों को देखते ही हर्ष हो,दुःखी जीवों पर करुणा हो और शत्रु पर प्रेम न हो सके तो द्वेषभी न हो , बल्कि मध्यस्थभाव रहे। // इति शुभम् //