________________ सेठियाजनाथमाला माता और माता को स्त्री कहता है, वैसे ही संसार के प्राणी मोह के नशे में मूर्छित हुए सुख दुःख के बाह्य-निमित्त कारणों को सुख दुःख के देने वाले मान लेते हैं / यह सब अज्ञान की महिमा है। . . .7 प्राणियों को जीवित रहने से, धन स्त्री और खाने पीने से न कभी सन्तोष हुआ और न होगा, अर्थात् प्राणी उक्त बासनामों से तृप्त न हुए ही इस असार संसार से कूच कर जाते हैं और करते रहेंगे! 8 संसार के पदार्थ---धन कुटुम्ब महल मकान औरऐश पाराम ये सब नष्ट हो जाते हैं; किन्तु पात्र को दिया गया दान, प्राणीमात्र पर हृदय से दिखाई हुई दया क्षमा तथा संयम आदि धर्म का पालन कभी नष्ट नहीं होता / संसार में आसक्त (लवलीन) हुआ मनुष्य त्यागने योग्य पदार्थ का सेवन करता है, और ग्रहण करने योग्य पदार्थ को छोड़ देता है / अहो ! संसार की विचित्र दशा है। 1. बहुत से लोग देवगति के जीवों को ईश्वर रूप मानते हैं; किन्तु उन्हें यह मालूम नहीं कि-- ईश्वर कौन है ? ईश्वर क्या वस्तु है ? ईश्वर किसे कहना चाहिये ? ईश्वर का क्या स्वरूप है ? ईश्वर कहां है ? इत्यादि इन बातों का ज्ञान होना परमावश्यक है। ईश्वर में स्पर्श रस गन्ध और वर्ण नहीं होता है, जो जीत्र कर्म का क्षय कर मोक्ष अवस्था को पालेता है, वही ईश्वर हो जाता है।