Book Title: Niti Shiksha Sangraha Part 01
Author(s): Bherodan Jethmal Sethiya
Publisher: Bherodan Jethmal Sethiya

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Page 95
________________ नीति-शिक्षा-संग्रह में पशु और मनुष्य समान हैं, केवल ज्ञान ही मनुष्यों में ज्यादा है; किन्तु जो मनुष्य ज्ञानहीन हैं वह पशु के समान हैं। 34 यदि मद से अन्धे हुए गजराज ने मदान्धता के वश होकर कान रूपी हाथ से गजमद के अर्थी भौरों को दूर किया तो उस के गण्ड- स्थल की शोभा घटी / भौरे तो फिर खिले हुए कमलों में जाकर निवास कर लेते हैं / इस का तात्पर्य यह है कि दानी पुरुष की शोभा योग्य दान करते रहने से ही है, याचकों को तो कोई न कोई दाता मिल ही जाता है। 35. राजा, वेश्या, यम, अग्नि, चोर, बालक, याचक, और, ग्रामकण्टक, अर्थात् जो आम निवासियों को सताकर अपनी जीविका करता है, इन आठ व्यक्तियों को दूसरों के दुःखकी परवाह नहीं रहती। - 36 ईश्वर का स्मरण- चिन्तन करने से मन पवित्र होता है, मन की पवित्रता से ज्ञान का प्रकाश होता है। जहां ज्ञान का प्रकाश है, वहां अज्ञानान्धकार नहीं रह सकता / इसलिए अज्ञानरूपी अन्धकार को दूर करने के लिए उस तरण तारण सर्वज्ञ परमात्मा का सोते बैठते खाते चलते फिरते-- हर समय स्मरण चिन्तन करो / जिस पवित्र मन में वह देवाधिदेव परमात्मा निवास करता है, वहाँ दुःख अज्ञान आदि का रहना कठिन है / जैसे चन्दन के वृक्ष से लिपटे हुए सर्प मोर के आने पर एक दम भाग जाते हैं।

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