Book Title: Niti Shiksha Sangraha Part 01
Author(s): Bherodan Jethmal Sethiya
Publisher: Bherodan Jethmal Sethiya

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Page 79
________________ -नीति-शिक्षा-संग्रह (7) ~~~~~ 57 बुद्धिमानों को चाहिये कि सदा अन धनादि का दान किया करें, लेकिन अधिक संचय न करें, क्योंकि दान करने के कारण ही राजा विक्रमादित्य कर्ण और बलि का नाम माज तक संसार में प्रसिद्ध है / मधुमक्खिया बहुत दिनों तक कठिन परिश्रम करके शहद इकट्ठा करती हैं। उसे वे न खुद भोगती हैं और न दूसरे को देती हैं; परन्तु जब उन का जमा किया हुआ मधु लोग / ले लेते हैं, तब वे दोनो हाथ मलती हैं, अर्थात् हाय हाय करती और पछताती हैं। 58 जब आत्मज्ञान हो जाता है, तब इस शरीर का अभिमान नहीं रहता / शरीर का अभिमान नष्ट होने पर जहां 2 मन जाता है, वहां 2 ही समाधि है, अर्थात् शरीर का ममत्व न रहने से शरीर से सम्बन्ध रखने वाले पुत्र मित्र कलत्र आदि में राग नहीं रहता और शत्रुओं पर द्वेष नहीं होता / सब वस्तुओं में समदृष्टि हो जाती है / तथा समदृष्टि होने पर आत्मा में समाधि रहती है। ___56 मनचाहे सब तरह के सुख किसी को भी नहीं मिलते हैं; क्योंकि सब भाग्याधीन हैं / इस बात को विचार कर विद्वानों को संतोष करना चाहिए। 60 जिस तरह हजारों गायों भैसों के बीच में से बछड़ा अपनी माँ के पास ही जाता है, उसी तरह जो कुछ कर्म किया जाता है, वह अपने कर्ता के ही साथ साथ चला जाता है।

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