________________ नीति-शिक्षा-संग्रह (81). और उत्तम वस्तु भी नीच को पाकर खराब हो जाती है; जैसे अमृत पीने से राहु की मृत्यु हुई और विष पीने से शंकर के कगठ की शोभा बढ़ गई। 6. वही उत्तम भोजन है, जो साधु महात्माओं को दान देकर बचा है। वही मित्रता है, जो दूसरे मनुष्य से की जाती है / वह बुद्धिमानी है, जिस में पाप नहीं है / वही धर्म है , जो विना छल कपट के किया जाता है / 61 मणि बेसमझ लोगों के पाँव के आगे लोटती है और काच सिर पर भी रक्खा जाता है। लेकिन बेचने खरीदने के समय जौहरी के सामने मणि मणि ही रहती है, और काच काच ही रहता है। 62 शास्त्र अनन्त हैं और विद्या बहुत हैं; लेकिन समय थोड़ा है और विघ्न बहुत हैं; इसलिए मनुष्यों को सारमात्र का ग्रहण करना चाहिये; जैसे हम जल में से दूध को ले लेता है। 63 दूर से आये हुए, रास्ते से थके हुए और विना प्रयोजन घर पर आये हुए का विना सत्कार किये ही जो मनुध्य भोजन करता है, यह निश्चय ही नीच गिना जाता है। 14 जो अनेक सूत्रों और अनेक शास्त्रों को पढ़कर भी मात्मा को नहीं पहिचानते , वे कलछा-चमचा के समान हैं, जो रसों में फिरता है; किन्तु उन का स्वाद नहीं जानता।