________________ (74) सेठियाजैनप्रन्थमाला का कारण है / इसलिए उसे छोड़कर सुखी होना चाहिए / 52 जो आने वाली विपत्ति का पहिले से उपाय कर लेता है तथा जिस की बुद्धि में विपत्ति भाजाने पर तत्काल उपाय सूम जाता है, ये दोनों सदा सुखी रहते हैं / और जो भाग्य के भरोसे पर रहकर उपाय नहीं करता, वह अवश्य दुःख भोगता 53 यदि राजा धर्मात्मा हो तो प्रजा भी धर्मिष्ठ होती है, यदि पापी हो तो पापी, और सम हो तो सम होती है / अर्थात् सब प्रजा राजा के अनुसार चलती है, जैसा राजा होता है वैसी प्रजा भी होती है। ___54 धर्महीन मनुष्य जीता हुआ भी मृतक के समान है, और धर्मयुक्त मग भी चिरंजीवी ही है, इस में कुछ सन्देह नहीं / 55 विषय में आसक्त मन बन्ध का हेतु है, और विषय बासना से रहित मुक्ति का कारण है / क्योंकि मनुष्यों के बन्ध और मोक्ष का कारण केवल मन ही है। 56 दुर्जन दूसरे धर्मात्मा के यश का विस्तार देखकर ईर्षारूपी अग्नि से जलते रहते हैं, क्योंकि वे उस की समानता नहीं कर सकते, इसलिए उस की निन्दा करके अपनी ईर्षाकपी अग्नि को शान्त करना चाहते हैं / बुद्धिमानों को चाहिए कि उस विचारे निन्दक की ओर ध्यान न दें।