Book Title: Niti Shiksha Sangraha Part 01
Author(s): Bherodan Jethmal Sethiya
Publisher: Bherodan Jethmal Sethiya

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Page 80
________________ सेठियाजेनग्रन्थमाला 61 जो कोई काम स्थिरता से नहीं करता, वह न बन में सुख पाता है और न जनसमूह में / बन में अकेले रहने से मौर मनुष्यों में उन के संग से उस की आत्मा जलती रहती है / 62 जैसे कुए आदि खोदने वाले को पाताल का जल मिलता हैं। वैसे ही गुरु की सेवा करने वाले को गुरु की विद्या मिलती है। 63 इस पृथ्वी पर " अन्न जल और मिष्ट वचन " ये तीन रत्न हैं; किन्तु मूर्ख लोग पत्थर के टुकड़ों को रत्न समझते हैं। 64 यह जीव जो कुछ बुरे काम या अपराध करता है, उसके अपराध रूपी वृक्ष में " दरिद्रता रोग दुःख और बन्धन" ये चार फल लगते हैं / अर्थात् निर्धनता बीमारी, क्लेश और बन्धन- ये सब जीव के बुरे कामों के फल हैं। जो आम का बीज बोता है, वह ग्राम के फल पाता है और जो बंबूल बोता है, वह काँटे पाता है। 65 बीती हुई बात का शोक न करना चाहिए, भावी की चिन्ता न करनी चाहिए, बुद्धिमान् लोग वर्तमान कालको लक्ष्य में रखकर प्रवृत्ति करते हैं; जिससे उन का भविष्य भी उज्ज्वल हो जाता है। - 66 धन का नाश होने पर धन फिर मिल सकता है। मित्र का नाश होने से दूसरा मित्र मिल सकता है। स्त्री की मृत्यु होने पर लोग दूसरा व्याह भी कर लेते हैं / पृथ्वी अपने अधिकार से

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