________________ सेठियाजेनग्रन्थमाला धन हीन होकर भी किसी से याचना न करना, यह तलवार की धार के समान व्रत सजनों में ही पाया जाता है। 16 जो मनुष्य माता पिता आदि बड़ों को नमस्कार करता है, उसे तीर्थ यात्रा का फल होता है; इसलिए उत्तम मनुष्यों को निरन्तर नमस्कार करना चाहिए। . 17 जो मनुष्य अपने उपकारी पूज्यवर्ग का तिरस्कार करता है, वह कभी भी धर्मात्मा नहीं हो सकता / जिस माता पिता और गुरु ने हमारे ऊपर अपार उपकार किया है, उस का बदला किसी प्रकार भी नहीं दिया जा सकता; इसलिए माता पिता और गुरु की सेवा-शुश्रूषा रूप भक्ति अवश्य करनी चाहिए / . 18 जो लोग माता पिता तथा गुरु के हितकारी वचनों की अवहेलना करते हैं, उन्हीं को कुपुत्र समझना चाहिए। क्योंकि माता पिता तथा गुरुका विरोधी, पापी समझा जाता है, और वह इस लोक में निन्दित होकर परलोक में दुर्गति पाता है। माता पिता और गुरु कभी सन्तान तथा शिष्य का बुरा नहीं चाहते,इसलिए उनकी माज्ञा पर कुतर्क करना सुपुत्र या सुशिष्य का काम नहीं। 16 कई उपाध्याय के बराबर एक प्राचार्य और कई प्राचार्यों के तुल्य एक पिता है और पिता से हजार गुणा अधिक माता है / माता अपना सर्वस्व देकर सन्तान की रक्षा करती है। पिता में यह पात कम देखी जाती है। दूसरा कारण यह है कि यह अपनी सन्तान