Book Title: Niti Shiksha Sangraha Part 01
Author(s): Bherodan Jethmal Sethiya
Publisher: Bherodan Jethmal Sethiya

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Page 68
________________ सेठियाजैनथमाला होता है। 6 जैसे एक एक बूंद के गिरने से सारा घड़ा भर जाता है, इसी प्रकार विद्या धन और धर्म में भी वही नियम समझना चाहिये / 7 पकी अवस्था में भी जो दुर्जन है, वह दुर्जन ही रहता है, सज्जन नहीं बन सकता / जैसे खूब पकी तीती लौकी कभी मीठी नहीं होती। 8 उत्तम काम करके मनुष्यों का क्षण भर जीना भी श्रेष्ठ है / बुरे काम करके लाखों वर्षों तक जीना उत्तम नहीं। हदीन पुरुषों का उद्धार करने में कटिबद्ध रहना चाहिए, तथा कोई स्वधर्मी जाति बन्धु देशबन्धु या कोई प्राणी यदि आपत्ति में पड़ा हो, उसकी उपेक्षा न कर उसे आपत्ति से छुड़ाने के लिए यथाशक्ति तन और धन से सहायता पहुँचाकर सुखी बनाने में उद्यमशील रहना चाहिए। 1. अपने पर किये हुए उपकार को भूल न जाना चाहिए, भूलनेवाले को लोग कृतनी अधर्मी और नीच कहते हैं / यदि उपकारी के उपकार का बदला चुकाने की शक्ति न हो तो भी सदा उसके उपकार को स्मरण करते हुए उससे उरिन होने की सदा इच्छा रखनी चाहिए और उसका कृतज्ञ बना रहना चाहिए / कृतज्ञ पुरुष में सुशीलता आदि गुणों का प्रादुर्भाव होता है। और कृतघ्नी में उन गुणों का लोप होता है।

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