________________ नीति-शिक्षा-संग्रह (47) पर्थी दोष को नहीं देखता। 15 जीव आप ही शुभ अशुभ कर्म करता है और उसका फल भी श्राप ही भोगता है / आप ही संसार में भ्रमण करता है और आप ही उससे मुक्त होता है / 16 ऋण करने वाला पिता और व्यभिचारिणी माता शत्रु है तथा सुन्दर स्त्री और मूर्ख पुत्र बैरी है। 17 लोभी को धन से, अभिमानी को नम्रता से, मूर्ख को उसके अनुसार चलके और पण्डित को सचाई से वश करना चाहिए। 18 राज्य न रहना अच्छा, किन्तु कुराजा का राज्य होना अच्छा नहीं / मित्र का न होना अच्छा, परन्तु कुमित्र को मित्र बनाना योग्य नहीं / शिष्य का न होना उत्तम, है, लेकिन निन्दनीय को शिष्य बनाना ठीक नहीं / भार्या न हो तो अच्छा है पर कुस्त्री को भार्या करना ठीक नहीं / 16 दुष्ट राजा के राज्य में प्रजा को सुख कैसे हो सकता, कुमित्र को मित्र करने से सुख कैसे मिल सकता, दुष्ट स्त्री से घर में शान्ति कैसे रह सकती तथा कुशिष्य को पढ़ाने वाले की कीर्ति कैसे हो सकती ! 20 सिंह से एक गुण सीखना चाहिए, अर्थात् कार्य छोटा हो या बड़ा, जिस को करना चाहते हैं, उसे सब प्रकार के प्रयत्न