Book Title: Niti Shiksha Sangraha Part 01
Author(s): Bherodan Jethmal Sethiya
Publisher: Bherodan Jethmal Sethiya

View full book text
Previous | Next

Page 60
________________ सेठियाजैनग्रन्थमाला ~~~~~~~~~~~~~ नीचे फल पत्ते और जल से उदर पूर्णकर, छाल के बस्त्र पहन कर,और तृण की शय्या पर सोकर,जीवन बिताना श्रेष्ठ है; लेकिन धनहीन होकर बन्धुओं में रहना ठीक नहीं। / 78 नाना भांति के पक्षी अनेक दिशाओं से आकर वृक्ष पर बसेरा लेते हैं, और प्रभात होते ही. अपनी 2 दिशा को चले जाते हैं ; इसी तरह कर्म-योग से पुत्र मित्र कलत्र आदि कुटुम्बियों का सम्बन्ध हुआ है, तथा समय पूरा होने पर अपने कर्म के अनुसार यथायोग्य स्थान पर चले जाया करते हैं, इस में हर्ष-विषाद करना मूर्खता है। 76 सदाचार का मार्ग, सुख की प्राप्ति का मुख्य साधन है तथा दुराचार का मार्ग, परिणाम में दुःख का कारण है / 80 अहंकारी मनुष्य के हृदय में उत्तम शिक्षा का अंकुर नहीं जमता / वे शिक्षाएँ पर्वत पर गिरे हुए पानी के समान ढलक जाती हैं / 81 उद्यम, कर्तव्यपरायणता और उत्तम आचरण ये तीनों चिरस्थायी सुख के आवश्यक अंग हैं / 82 दुराचार से उत्पन्न हुआ सुख क्षणभङ्गुर है, अनित्य है / तथा वह, क्लेश दुर्बलता और पश्चात्ताप को प्राय: अपने स्थान में छोड़कर जाता है / 83 परोपकार की उत्कण्ठा का आत्मा में विकास होने से

Loading...

Page Navigation
1 ... 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114