________________ नीति-शिक्षा संग्रह (45) दुःख भोगता है। एक ही नरक में पड़ता है / और एक ही आत्मा मोक्ष पाता हैं / इन कार्यों में स्त्री पुत्रादि कोई भी सहायता नहीं कर सकता। 108 ब्रह्मज्ञानी (आत्मज्ञानी) को स्वर्ग तृण समान, शूरवीर को जीवन तृण समान, जितेन्द्रिय को स्त्री तृण समान.. और निस्पृह को सारा जगत् तृण समान है / 0000wooom......... उपदेशमाण-माला (3) 1 विदेश में मित्र विद्या होती है / घर में मित्र भार्या है। रोगी का मित्र औषध है और मृतमनुष्य का मित्र धर्म है। 2 समुद्र में वर्षा होना वृथा है, अवाये को भोजन व्यर्थ है, धनी को देना व्यर्थ है और दिन में दीपक निरर्थक है / 3 मेघके जल के सामन दूसरा जल नहीं,-प्रात्मबल के सदृश दूसरा बल नहीं, चक्षु के तेज के समान दूसरा तेज नहीं, और अन्न के तुल्य दूसरा प्रिय पदार्थ नहीं / 4 लक्ष्मी चंचल है, प्राण जीवन और शरीर नश्वर है ! इस चर अचर संसार में केवल धर्म ही निश्चल. है। 5 पुरुषों में नाई और पक्षियों में कौवा चालाक होता है / पशुओं में सियार और स्त्रियों में मालिन चालाक होती है।