________________ सेठियाजेनप्राथमाला .. 100 जिसे किसी प्रकार की इच्छा नहीं है, वह अधिकारी नहीं होगा। जो कामी नहीं है, वह शरीर की शोभा बढ़ाने में प्रेम न रक्खेगा / जो चतुर नहीं है, वह प्रिय नहीं बोल सकेगा। जो स्पष्ट बोलने वाला है, वह ठगिया न होगा। 101 मूर्ख विद्वानों से, निर्धन धनिकों से, व्यभिचारिणी स्त्रियां कुलाङ्गनाओं से, और विधवाएँ सधवाओं से द्वेष करती हैं / 102 मालस्य से विद्या चली जाती है, दूसरे के हाथ में गया हुआ धन नष्ट हो जाता है / बीज की कमी से खेत ख़राब हो जाता है / विना सेनापति के सेना मारी जाती है। 103 अभ्यास से विद्या पाती है, शील से कुलीनता, गुण से भलमंसी और नेत्र से कोप ज्ञात होता है / 104 धन से धर्म की, चित्त की एकाग्रता से ज्ञान की, मृदुता से राजा की तथा भली स्त्री से घर की रक्षा होती है / 105 दान दरिद्रता का नाश करता है / सुशीलता दुर्गति को दूर करती है / बुद्धि अज्ञान का नाश करती है तथा भावनाभक्ति भय को भगाती है। 106 काम के समान कोई व्याधि नहीं है / अज्ञान के समान दूसर। वैरी नहीं है / क्रोध के समान दूसरी अग्नि नहीं है और ज्ञान से अधिक कोई सुख नहीं है / 107 एक ही आत्मा जन्म मरण करता है / एक ही सुख