Book Title: Niti Shiksha Sangraha Part 01
Author(s): Bherodan Jethmal Sethiya
Publisher: Bherodan Jethmal Sethiya

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Page 23
________________ नीति-शिक्षा-संग्रह (26) 45 दुनिया में ज्ञान भरा है, सद्गुण भरे हैं, चाहो सो ले लो / देनेवाला कोई नहीं है, लेनेवाला चाहिए / इच्छा को प्रबल बनाओ, चाहोगे वह मिलेगा। 46 अभिमान की रक्षा के लिए इच्छा न होते हुए भी अनिष्ट काम करने पड़ते हैं; इसलिए अभिमान को छोड़ना ही योग्य 47 वासना का फल भोगे विना पिंड नही छूटता; इसलिए सदा शुभ वासना रखनी चाहिए, जिससे अशुभ वासना को उत्पन्न होने का अवकाश ही न मिले / ____48 यह बाह्य जगत् दुःख रूप नहीं है, लेकिन अपनी आत्मा में उत्पन्न होने वाले संकल्प विकल्प ही दुःख रूप हैं; इसलिए इन का नाश करो। 46 आत्म-स्वरूप को भूल जाने से कर्मों का बन्ध होता है / कर्मों का उदय होने से चित्त में विक्षेप उत्पन्न होता है / चित्त-विक्षेप से बुरी भली वासनाएँ पैदा होती हैं और उन से अनेक प्रकार के सुख दुःख उत्पन्न होते हैं; इसलिए शुद्ध उपयोग से कर्मों का क्षय करने का प्रयत्न करो। 50 अपनी भूल सुधारने के लिए ही दूसरे लोग कठिनाइया उपस्थित करते हैं, वे परम-उपकारी हैं / चाहे तुम उनके अनुकूल या प्रतिकूल आचारण करो; लेकिन वे तो तुम्हें सुधारने.

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