Book Title: Niti Shiksha Sangraha Part 01
Author(s): Bherodan Jethmal Sethiya
Publisher: Bherodan Jethmal Sethiya

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Page 21
________________ नीति-शिक्षा-संग्रह (17) 33 'यह छोटा है, मैं बड़ा हूं' इस बुद्धि से विक्षेप उत्पन्न होता है; इसलिए इस विक्षेप को समभाव रूपी अग्नि से जलाकर विषमता दूर कर समता उत्पन्न करनी चाहिए / 34 'अपना कोई नहीं है' ऐसा मानना सब से ऊंचा मार्ग है / पूरी तरह सचेत रहकर आत्मा से अशुद्धि निकालकर फेंक दो / असीम क्षमा और नम्रता धारण करो / ___35 आवरण का क्षय करने के लिए आत्मदृष्टि रक्खो / आत्मसंबंधी क्रिया करने से ही आवरण का अभाव होता है। ज्यों 2 आवरण का क्षय होता है, त्यों 2 विक्षेप भी घटता जाता है; क्योंकि आवरण से ही विक्षेप की पुष्टि होती है। 36 योग्य मनुष्य के साथ बोलो / आग्रही (हठी) मनुष्य के सामने मौन धारण करो / हठी और सामना करने वाले के सम्मुख 'शास्त्र ऐसा कहते हैं' ऐसा कहकर उत्तर दो / अपने ऊपर न रक्खो / नहीं तो विवाद करना पड़ेगा। 37 त्याग और आत्म-योग (स्वरूप का अनुभव) दोनों को साथ रक्खो / अकेले त्याग में कल्याण नहीं है / त्याग के साथ शुद्ध आत्मस्वरूप का अनुभव होना चाहिए / 38 यदि आत्म-शुद्धि की इच्छा रखते हो तो बदले की इच्छा न रखकर काम करो / जितना स्वार्थत्याग है उतना परमार्थ है / .. 36 दूसरे का अपने पर विरोध भाव देखकर विवेक दृष्टि से

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