________________ नीति-शिक्षा-संग्रह (25) 63 आलस्य सब को एक सा पतित करने वाला दुर्गुण है। आलसी मनुष्य अपने लक्ष्य तक कभी नहीं पहुंचता। जैसे जंग लोहे को ग्वराब कर देता है, वैसे ही आलस्य शरीर को बिगाड़ देता है / आलस्य एक भारी बोझा है, यह एक घोर उपद्रव है। कठिन काम करने से जितना शरीर खराब नहीं होता, उतना आलस्य से होता है / अर्थात् आलस्य महाशत्रु है। 64 जो काम--धन्धा उत्साह की वृद्धि और चिन्ता से मुक्त करनेवाला है, उसी काम-धन्धे में लगे रहकर जीवन को पूरा करना, जीवन की उच्च दशा है / ऐसी उच्च दशा वाले जीव संसार में विरले ही हैं। 65 धीर पुरुष आपत्ति आने पर बड़ी बहादुरी और धीरता के साथ उस आपत्ति को गले लगाने के लिए तय्यार रहते हैं / ऐसा करने से उन में स्वावलम्बन का भाव जागृत होता है तथा श्रम करने की तथा सहन करने की शक्ति जीवित रहती है। 66 संकट में पड़े हुए मनुष्य, उन से अधिक संकट भोगने वाले मनुष्यों की स्थिति पर विचार करते रहें, तो उन्हें आश्वासन मिलेगा तथा दुःख का विस्मरण होगा; इसलिए अपनी ऐसी प्रकृति बनाना अति लाभदायक है। 67 अपनी वृत्तियां-- आचरण पवित्र बनाना चाहिए /