Book Title: Niti Shiksha Sangraha Part 01
Author(s): Bherodan Jethmal Sethiya
Publisher: Bherodan Jethmal Sethiya

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Page 25
________________ नीति-शिक्षा-संग्रह करोगे, तो तुम इच्छाओं को जीत सकोगे / ___57, इच्छाएँ घोड़े के समान हैं, जो उस की पूंछ पकड़ता है, वह उसके साथ घसीटा जाता है और गढ़े में गिरता है; इसलिए पूँछ न पकड़कर उस पर सवारी करना सीखो, अर्थात् इच्छा को वश में करो। 58 दूसरे की ईर्षा करने से वह दोष तुम्हारे / भीतर घर कर लेगा; इसलिए ईर्षा न करके गुण ढूंढो-गुणानुरागी बनो, इस से तुम्हारी ओर गुण स्वयं खिंचे चले आयेंगे / 56 पाप और पुण्य मन के विचारों पर निर्भर हैं-उत्तम विचारों से पुण्य और बुरे विचारों से पाप होता है; इसलिए हमेशा मन को उन्नत और पवित्र करने का यत्न करते रहो। 60 दो काली वस्तुओं के मिलने से एक सफेद वस्तु उत्पन्न नहीं हो सकती, इसी तरह निन्दा करनेवाले व्यक्ति की निन्दा करने से यश नहीं मिलता; लेकिन असत्य-दोष की वृद्धि होती है, इस से वस्तु स्थिति नहीं सुधरती, बिगड़ती जाती है / 61 अपने पर किये हुए आक्षेपों का निराकरण करने से ही निन्दा टीका-टिप्पणी तथा आत्मा में बुरे विचार उत्पन्न होते हैं, इसलिए इस पर लक्ष्य न देकर सात्विकवृत्ति से विचार किया जावे तो कुछ हानि नहीं है। 62 जैसा बनना हो, वैसा ही आलम्बन रक्खो /

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