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उरग
बेंद्री
तेंद्री
नवतत्त्वसंग्रहः (२५) कुल १९७५००००००००००० एक कोडाकोडी ९७५० लाख कोड कुल है। पृथ्वी १२ लाख कोटि जलचर
१२॥ लाख कोटि अप ७ लाख कोटि स्थलचर
१० लाख कोटि ३ लाख कोटि खेचर
१२ लाख कोटि वायु ७ लाख कोटि
१० लाख कोटि वनस्पति २८ लाख कोटि भुजग
९ लाख कोटि ७ लाख कोटि मनुष्य
१२ लाख कोटि ८ लाख कोटि देवता
२६ लाख कोटि चौरिंद्री | ९ लाख कोटि नारकी __ २५ लाख कोटि
अथ संघयणस्वरूपम् १. वज्रऋषभनाराच संहनन-अस्थिसंचय, वज्र तो कीली १, ऋषभ-परिवेष्टन २, नाराच-उभय मर्कटबन्ध ३, दोनो हाड आपस में मर्कटबंधस्थापना, ऋषभ उपरि वेष्टनस्थापना। वज्र उपरि तीनो हाडकी भेदनेहारी कीली ते स्थापना । काली रेषा वज्र कीली है।
२. ऋषभनाराच-ऋषभनाराच में उभय मर्कट बंध १, नाराच उपरि वेष्टन, कीली नही। स्थापनाऽस्य ।
३. नाराच-मर्कटबंध तो है, अने वेष्टन अने कीली एह दोनो नही । स्थापना । ४. अर्धनाराच-एक पासे कीली अने एक पासे मर्कटबंध ते अर्धनाराच स्थापना ।
५. कीलिका-दोनो हाडकी वींधनेहारीनि केवल एक कीली, मर्कटबंध नही ते । कीलिकाकी स्थापना ।
६. सेवार्त्त-दोनो हाडका छेहदाही स्पर्श है, ते सेवार्त्त । छेदवृत्त छेयट्ट इति नामांतर । स्थापना।
अथ षट् संस्थानस्वरूप यंत्रं स्थानांगात् १. समचतुरस्त्र-सम कहीये शास्त्रोक्त रूप, चतुर् कहीये चार, अस्र कहीये शरीरना अवयव है जेहने विषे ते समचतुरस्त्र, सर्व लक्षण संयुत एक सो आठ अंगुल प्रमाण ऊंचा ।
२. न्यग्रोधपरिमंडल-न्यग्रोध-वडवत् मंडल नाभि उपरे । परि कहीये प्रथम संस्थान के लक्षण है, एतावता वडवत् नीचे नाभि ते लक्षण हीन, वड उपरे सम तैसे नाभि उपर सुलक्षणा।
३. सादि-नाभिकी आदिमे एत(ट)ले नाभि से हेठे लक्षणवान् अने नाभि के उपरि लक्षण रहित ते 'सादि' संस्थान कहीये ।
१. एनी।