Book Title: Navtattva Sangraha
Author(s): Vijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
Publisher: Samyagyan Pracharak Samiti

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Page 457
________________ ००० ४२२ नवतत्त्वसंग्रहः मिथ्यात्व आदि नरक-आयु पर्यंत १६ विच्छित्ति २ सा १०१ अप्रत्याख्यान ४ का बंध आदिके चार गुणस्थानवत्. प्रत्याख्यान आदिके पांच गुणस्थानवत्. संज्वलन क्रोध १, मान २, माया ३ नवमे लग पूर्ववत् अने संज्वलन लोभ आदिके दश गुणस्थानवत्.. ___ अथ अज्ञान रचना गुणस्थान २ आदिके बन्धप्रकृति ११७ पहिले, दूजे १०१ पूर्ववत्. अथ मति, श्रुत, अवधिज्ञान रचना चौथेसे लेकर बारमे ताइ समुच्चयगुणस्थानवत्. अथ मन:पर्यवज्ञान छटेसे लेकर बारमे पर्यंत रचना समुच्चयवत्. केवलज्ञान १३ मे १४ मे वत्. अथ सामायिक, छेदोपस्थापनीय छट्टे, सातमे, आठमे, नवमे गुणस्थानवत्. अथ परिहारविशुद्धि ६७ मे वत्, सूक्ष्मसंपराय दशमेवत्. यथाख्यात ११।१२।१३।१४ वत्, देश संयम पांचमेवत्, असंयती आदिके चार गुणस्थानवत्. __ अथ चक्षु, अचक्षु, अवधिदर्शन अवधिज्ञानवत् रचना १२ मे पर्यंत गुणस्थानवत्, केवलदर्शन केवलज्ञानवत्. अथ कृष्ण १, नील २, कापोत ३ लेश्या रचना बन्धप्रकृति ११८ है. आहारकद्विक नही. गुणस्थानक ४ आदिके तीर्थंकर रहित पहिले ११७ आगले तीन गुणस्थान समुच्चयगुणस्थानवत्. अथ तेजोलेश्या रचना गुणस्थान ७ आदिके बन्धप्रकृति १११ है. सूक्ष्मत्रिक ३, विकलत्रिक ३, नरकत्रिक ३ एवं ९ नास्ति. तीर्थंकर १, आहारकद्विक २, ए तीन विना पहिले १०८ आगे ६ गुणस्थानोमे समुच्चयगुणठाणावत्. पद्मलेश्या रचना गुणस्थान ७ आदिके बन्धप्रकृति १०८ है. एकेंद्रि १, थावर १, आतप १, सूक्ष्मत्रिक ३, विकलत्रिक ३, नरकत्रिक ३ एवं १२ नास्ति. तीर्थंकर १, आहारकद्विक २, ए त्रण विना पहिले १०५ आगे गुणस्थानवत्. अथ शुक्ललेश्या रचना गुणस्थान १३ आदिके बन्धप्रकृति १०४ है. पूर्वोक्त एकेंद्रिय आदि १२ अने तिर्यंचत्रिक ३, उद्द्योत १ एवं १६ नास्ति. तीर्थंकर १, आहारद्विक २ विना पहिले १०१ आगे सर्वगुणस्थानवत्. अथ भव्यरचना १४ गुणस्थानवत्, अभव्य प्रथम गुणस्थानवत् जानना. अथ क्षायिक सम्यक्त्व रचना गुणस्थान ११-अविरति सम्यग्दृष्टि आदि, बन्धप्रकृति ७९ है. मिथ्यात्व आदि १६, अनंतानुबंधि आदि २५ एवं ४१ नही. आहारकद्विक विना चौथे ७७ आगे समुच्चयगुणस्थानद्वारवत्. अथ क्षयोपशम सम्यक्त्व रचना गुणस्थान ४-अविरतिसम्यग्दृष्टि आदि, बन्ध पूर्वोक्त ७९ क्षायिकवत्, चारो गुणस्थान जेसे जान लेना. अथ उपशम सम्यक्त्व रचना गुणस्थान ८-अविरति सम्यग्दृष्टि आदि, बन्धप्रकृति ७७ है. पूर्वोक्त ४१ तो क्षायिकवाळी

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