Book Title: Navtattva Sangraha
Author(s): Vijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
Publisher: Samyagyan Pracharak Samiti

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Page 535
________________ ५०० नवतत्त्वसंग्रहः सुखसे चोमास करी ग्यानकी लगन षरी तिनकी कहन करी ग्यानरूप ठायो है भव्य जन पठन करत मन हरषत ग्यानकी तरंग देत चित्तमे सुहायो है संवत तो "मुनि कर' अंक 'इंदु 'संष धर कातिक सुमास वर तीज बुध आयो है ३ दोहा-ग्यान कला घटमे वसि, रसेसु निज गुण माहि परचे आतमरामसे, अचल अमरपुरि जाहि १ संघ चतुर्विध वांचिउ, ग्यानकला घट चंग गुरुजन केरे मुख थकी, लहिसो तत्त्वतरंग २ इति श्रीआत्मारामकृत नवतत्त्वसंग्रह संपूर्ण. लिपीचक्रे 'वि(बि)नोली' मध्ये. शुभं भवतु. वाच्यमानं चिरं नन्द्यात्. श्रीरस्तु. १. १९२७ ।

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