Book Title: Navtattva Sangraha
Author(s): Vijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
Publisher: Samyagyan Pracharak Samiti

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Page 540
________________ परिशिष्ट-१ औषध अनेक जरि मंत्र तंत्र लाख करी होत न बचाव घरि एक कहु प्रानको सार मार करी छार रूप रस धरे परे यम निशदिन खरे हरे मानी मानको वाल लाल माल नाल थाल पाल भाल साल ढाल जाल डाल चले छोर थानको आतम अजर कार सिंचत अमृतधार अमर अमर नाम लेत भगवान को अंध ज्ञान द्रगरित मानत अहित चित ग(गि)नत अधम रीत रूप निज हार रे अरव अनंत अंश ज्ञान चिन तेरो हंस केवत अखंड वंस बाके कर्म भार रे चुरा नुरा लुरा सुरा श्यामा श्वेत रूप भूरा अमर नरक कुरा नर हे न नार रे सत चित निराबाध रूप रंग विना लाध पूरण अखंड भाग आतम संभार रे अधिक अज्ञान करी पामर स्वरूप धरी मांगे भीख घरि घरि नाना दःख लहीये गरे घरि रिध खरि करमत विज जरी भुल विन ज्ञान दिन हीन रहीये गुरु विभु वेन ऐन सुनत परत चेन करत जतन जैन फेन सब दहिये करमकलंक नासे आतम विमल भासे खोल द्रग देख लाल तोपे सर्व(ब) कहिये काची काया मायाके भरोसो भमीयो तुं बहु नाना दुःख पाया काया जात तोह छोरके सास खास सुल हुल नीर भरे पेट फुल कोढ मोढ राज खाज जुरा तुर छोरके मुरछा भरम रोग सदल डहल सोग मुत ने पुरीस रोक होक सहे जोरके इत्यादि अनेक खरी काया संग पीड परी सुंदर मसान जरी परी प्यार तोरके खेती करे चिदानंद अघ बीज बोत वृंद रसहे शींगार आद लाठी रूप लइ हे राग द्वेष तुव घोर कसाय बलद जोर शिरथी मिथ्यात भोर गर्दभी लगइ हे तो होय प्रमाद आयु चक्रकार कार घटी लायु शिर प्रति प्रष्ट हारा कर खइ हे नाना अवतार कलार चिदानंद वार धार इत उत प्रेरकार आतमकुं दइ हे . गेरके विभाव दूर असि चार लाख नूर एहि द्रव्य वंजन प्रजाय नाम लयो हे मति आदि ज्ञान चार व्यंजन विभाव गन पराजय नाम सन शद्ध जान यो हे चरम शरीर पुन आतम किंचित न्यून व्यंजन सुभाव द्रव्य परजाय धर्यो हे चार हि अनंत फुन व्यंजन सुभाव गुन शुद्ध परजाय थाय धाय मोक्ष वर्यो हे घरि घरि आउ घटे घरि काल मान घटे रूप रंग तान हटे मूढ कैसें सोइये? जीया तुं तो जाने मेरो मात तात सुत चेरो तामे कौन प्यारो तेरो पान कि गोइये चाहत करण सुख पावत अनंत दुःख धरम विमुख रूख फेर चित रोइये आतम विचार कर करतो धरम वर जनम पदारथ अकारथ न खोइये नरको जनम वार वार न विचार कर रिदे शुद्ध ज्ञान धर परहर कामको पदम वदन घन पद मन अठ भन कनक वरन तन मनमथ वामको हरि हर भ्रम(ब्रह्म)वर अमर सरव भर मन मद पर छर धरे चित भामको शील फिल चरे जंबु जारके मदनतंबु निरारंग अंगकंबु आतम आरामको

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