Book Title: Navtattva Sangraha
Author(s): Vijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
Publisher: Samyagyan Pracharak Samiti

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Page 542
________________ परिशिष्ट - १ के मधु पीके टीके शीखंड सुगंड लीके करत कलोल जीके नागबेर चाख रे अतर कपूर पूर अव (ग) र तगर भूर मृगमद घनसार भरे धरे खात (ख) रे सेव आरू आंब दारु पीसता बदाम चारु आतम चंगेरा पेरा चखत सुदाख रे मृदु तन नार फास सजक (के) जंजीर पास पकरी नरकवास अंत भई खाखरे तरु खग वास वसे रात भए कसमसे सूर उगे जात दसे दूर करी चीलना प्यारे तारे सारे चारे ऐसी रीत जात न्यारे कोउ न संभारे फेर मोह कहा कीलना जैसे हवाले मोल मीलके वीछर जात तैसे जग आतम संजोग मान दीलना कौन वीर मीत तेरो जाको तु करत हेरो रयेन वस (से) रो तेरो फेर नहि मीलना थोरे सुख काज मूढ हारत अमर राज करत अकाज जाने लेयुं जग लुंटके कुटंबके काज करे आतम अकाज खरे लछी जोरी चोर हरे मरे शीर फुटके करम सनेह जोर ममता मगन भोर प्यारे चले छोर जोर रोवे शीर कुट नरको जनम पाय वीरथा गमाय ताह भूले सुख राह छले रीते हाथ उठके देवता प्रयास करे नर भव कुल खरे सम्यक श्रद्धान धरे तन सुखकार रे करण अखंड पाय दीरघ सुहात आय सुगुरु संजोग थाय वाणी सुधा धार रे तत्त्व परतीत लाय संजम रतन पाय आतमसरूप धाय धीरज अपार रे करत सुप्यार लाल छोर जग भ्रमजाल मान मीत जित काल वृथा मत हार रे धरत सरूप खरे अधर प्रवाल जरे सुंदर कपुर खरे रदन सोहान रे इंदुवत वदन ज्युं रतिपति मदन ज्युं भये सुख मगन ज्युं प्रगट अज्ञान रे पीक धुन साद करे धाम दाम भुर भरे कामनीके काम जरे परे खान पान रे करता तु मान काहा (ह) आतम सुधार राह नहि भारे मान छोरे सोवना मसान रे नरवर हरि हर चक्रपति हलधर काम हनुमान वर भानतेज लसे है जगत उद्धार कार संघनाथ गणधार फुरन पुमान सार तेउ काल से है हरिचंद मुंज राम पांडुसुत शीतधाम नल ठाम छर वाम नाना दुःख फसे है देढ दिन तेरी बाजी करतो निदान राजी आतम सुधार शिर काल खरो हसे है परके भरम भोर करके करम घोर गरके नरक जोर भरके मरदमे धर कुटंब पूर जरके आतम नूर लरके लगन भूर परके दरदमें सरके कुटंब दूर जरके परे हजूर मरके वसन मूर खरके ललदमे भरके महान मद धरके निव न हद धरके पुरान रद मीलके गरदमें फटके सुज्ञान संग मटके मदन अंग भटके जगत कंग कटके करदमें रटके तो नार नाम खटके कनक दाम गटके अभक्षचाम भटके विहदमें हटके धरम नाल डटके भरमजाल छटके कंगाल लाल रटके दरदमें झटके करत प्रान. लटके नरक थान खटके व्यसन मिर (ल) आतम गरदमे द्वा(बा)रामती नाथ निके सकल जगत टीके हलधर भ्रात जीके सेवे बहु रान है हाटक प्रकार करी रतन कोशीश जरी शोभत अमरपुरी स (सा) जन महान रे ५०७ ३८ ३९ ४० ४१ ४२ ४३ ४४ ४५

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