Book Title: Navtattva Sangraha
Author(s): Vijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
Publisher: Samyagyan Pracharak Samiti

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Page 479
________________ ४४४ नवतत्त्वसंग्रहः ___ एवं मानचतुष्क एवं माया ४ एवं लोभ ४. इतना विशेष-आपणे अपणे चतुष्क करी जानना. लोभ दशमे ताई है सोइ नवमे गुणस्थानकी ६३ माहिथी वेद तीनकी विच्छित्ति कर्यां ६० रही. अपणी बुद्धिसें विचार लेना. अथ मति-अज्ञान, श्रुत-अज्ञान रचना गुणस्थान २ आदिके उदयप्रकृति ११७ पहिले, १११ दूजे, समुच्चयवत्. अथ विभंगज्ञान रचना गुणस्थान २ आदिके उदयप्रकृति १०६ अस्ति. एकेंद्री १, आतप १, विकलत्रय ३, थावरचतुष्क ४, आनुपूर्वी मनुष्यकी १, तिर्यंचकी १, मिश्रमोह० १, सम्यक्त्वमोह० १, आहारकद्विक २, तीर्थंकर १ एवं १६ नास्ति. १] मि | १०६ मिथ्यात्व १, नरकानुपूर्वी १ विच्छित्ति २] सा | १०४ अथ ज्ञानत्रय रचना गुणस्थान ९ अवरितिसम्यग्दृष्टि आदि, उदयप्रकृति १०६ है. मिथ्यात्व १, आतप १, सूक्ष्मत्रिक ३, अनंता० ४, एकेंद्री १, थावर १, विकलत्रय ३, मिश्रमोह० १, तीर्थंकर १ एवं १६ नास्ति. ४] अ | १०४ आहारकद्विक २ उतारे. अप्रत्या० ४, वैक्रिय-अष्टक ८, मनुष्यानुपूर्वी १, तिर्यंचानुपूर्वी १, दुर्भग १, अनादेय १, अयश १ विच्छित्ति ००० आगे सर्वत्र समुच्चयगुणस्थानवत्. मनःपर्याय छ8से लेकर पूर्वोक्तवत्. केवलज्ञान १३।१४ मे वत्. सामायिक, छेदोपस्थापनीय छठेसे नवमे लग समुच्चयवत्. अथ परिहारविशुद्धि रचना गुणस्थान-२ प्रमत्त, अप्रमत्त, उदयप्रकृति ७८ है. पूर्वोक्त छद्रुकी ८१, तिण मध्ये स्त्रीवेद १, आहारकद्विक २ एवं ३ नही. सातमे थीणद्धित्रिक नही ७५. सूक्ष्मसंपराय दशमे वत्. यथाख्यातमे ११।१२।१३।१४ मे गुणस्थानवत् जान लेनी. देशविरते ८७. अथ असंयम प्रथम चार गुणस्थानवत्. अथ चक्षुर्दर्शन रचना गुणस्थान १२ आदिके उदयप्रकृति १०९ है. तीर्थंकर १, साधारण १, आतप १, एकेंद्री १, थावर १, सूक्ष्म १, बेंद्री १, तेंद्री १ आनुपूर्वी ४, अपर्याप्त १ एवं १३ नही. मिश्रमोह०१, सम्यक्त्वमोह० १, आहारकद्विक २ एवं ४ उतारे. मिथ्यात्व १ विच्छित्ति २ सा | १०४ अनंतानुबंधि ४, चौरिद्री १ एवं ५ विच्छित्ति ३) मि | १०० मिश्रमोह०१ मिली. मिश्रमोह०१ विच्छित्ति ४] अ १०० सम्यक्त्वमोह० १ मिली आगे समुच्चयगुणस्थानव.

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