Book Title: Navtattva Sangraha
Author(s): Vijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
Publisher: Samyagyan Pracharak Samiti

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Page 483
________________ नवतत्त्वसंग्रहः आगे गुणस्थान समुच्चयवत्. अथ भव्यरचना गुणस्थानवत् १४ सर्वे. अथ अभव्य प्रथम गुणस्थानवत्. अथ उपशम रचना गुणस्थान ८, चौथा आदि उदयप्रकृति १०० है. मिथ्यात्व १, आप १, सूक्ष्मत्रिक ३, अनंतानुबंधि ४, एकेंद्री १, थावर १, विकलत्रय ३, मिश्रमोह० १, सम्यक्त्व - मोह० १, आनुपूर्वी ३ देव विना, आहारकद्विक २, तीर्थंकर १ एवं २२ नास्ति. ४ अ १०० ४४८ tত ६ प्र ७ ८६ न ७८ अ ७५ आगले च्यार गुणस्थानोमे समुच्चय गुणस्थानवत्. अथ क्षयोपशम सम्यक्त्व रचना गुणस्थान ४-४।५।६।७ समुच्चयगुणस्थानवत्. अथ क्षायिक सम्यक्त्व रचना गुणस्थान ११ - चौथा आदि, उदयप्रकृति १०१ है. मिथ्यात्व १, आतप १, सूक्ष्मत्रिक ३, अनंतानुबंधि ४, एकेंद्री १, थावर १, विकलत्रय ३, मिश्रमोह० १, सम्यक्त्वमोह० १, ऋषभनाराच आदि ५ संघयण एवं २१ नास्ति. ४ अ ९८ अप्रत्याख्यान ४, वैक्रियद्विक २, देवत्रिक ३, नरकगति १, नरकआयु १, दुर्भग १, अनादेय १, अयश १ एवं १४ व्यवच्छेद २ सा १०६ ३ मि १०० प्रत्याख्यान ४, तिर्यंचआयु १, नीचगोत्र १, उद्योत १, तिर्यंचगति १ एवं ८ विच्छित्ति थीद्धित्रिक ३ विच्छित्ति आगे समुच्चयवत्. ० ५ ७७ ६ प्र ७५ ७ अ ७० आगे समुच्चयवत्. अथ मिश्र १, सास्वादनसम्यक्त्व १, मिथ्यात्व १, आपणे आपणे गुणस्थानवत्. अथ संज्ञी रचना गुणस्थान १२ आदि के उदयप्रकृति ११३ अस्ति. एकेंद्री १, थावर १, सूक्ष्म १, साधारण १, आतप १, विकलत्रय ३, तीर्थंकर १ एवं ९ नास्ति. १ मि १०९ आहारकद्विक २, तीर्थंकर १ उतारे. अप्रत्या० ४, वैक्रिय-अष्टक ८, मनुष्यआनुपूर्वी १, तिर्यंच - आनुपूर्वी १, तिर्यंचआयु १, उद्योत १, तिर्यंचगति १, दुर्भग १, अनादेय १, अयश १, नीचगोत्र एवं २१ विच्छित्ति प्रत्याख्यान ४, नीचगोत्र १ विच्छित्ति आहारकद्विक २ मिले. थीणद्धित्रिक ३, आहारकद्विक २ विच्छित्ति o मिश्र मोह ० १, सम्यक्त्वमोह० १, आहारकद्विक २ एवं ४ उतारे. मिथ्यात्व १, अपर्याप्त १ विच्छित्ति नरक - आनुपूर्वी १ उतारी. अनंतानुबंधि ४ विच्छित्ति आनुपूर्वी ३ नरक विना उतारी. मिश्रमोह० १ मिली

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