Book Title: Navtattva Sangraha
Author(s): Vijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
Publisher: Samyagyan Pracharak Samiti

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Page 491
________________ ४५६ ४ अ १४१ ५ दे १४१ ६ प्र १४१ ७ अ १४१ ८ अ १३८ ९ अ १३८ १० सू १०२ ११ उ १०१ १२ क्षी १०१ ८५ ८५ १३ स १४ अ प्रकृति तीर्थंकर १ आहारकद्विक २, देव-आयु १ विकलत्रिक ३, सूक्ष्म ३, नरक, तिर्यग्, मनुष्य - आयु ३, सुरद्विक २, वैक्रियद्विक २, नरकद्विक २ सर्व १५ केंद्री १, थावर १, आतप १ तिर्यंच गति १, तिर्यंचानुपूर्वी १, औदारिकद्विक २, उद्योत १, छेवट्ठा १ शेष ९२ प्रकृति भाग ९ करी ३६ की विच्छित्ति व्यौरा गुणस्थानरचनावत् संज्वलन लोभ विच्छित्ति स्वामी ४ गुणस्थान ७ अप्रमत्त तिर्यंच, मनुष्य मिथ्यात्वी मिथ्यात्वी ईशानांत आयु ३ की विच्छित्ति निद्रा १, प्रचला १, ज्ञानावरण ५, दर्शना० ४, अंतराय ५ विच्छित्ति ८५ व्यवच्छेदे मुक्तौ मिथ्यात्व मिथ्यात्ववत्. सास्वादन सास्वादनवत्, मिश्र मिश्रगुणस्थानवत्. अथ संज्ञी रचना गुणस्थानरचनावत् गुणस्थान १२ पर्यंत. अथ असंज्ञी रचना गुणस्थान २ आदिके सत्ता० १४७ अस्ति, तीर्थंकर १ नही. पहिले १४७, दूजे १४७. अथ आहारक रचना गुणस्थानरचनावत् १३ लगे. अथ अनाहारक रचना कार्मणयोगरचनावत्. अति सत्ताधिकार संपूर्ण. ( १६५ ) उत्कृष्ट प्रकृतिबन्धयन्त्रम् ( १६६ ) जघन्यप्रकृतिबन्धस्वामियन्त्रम् शतकात् देवता, नारकी मिथ्यात्वी O चारो गतिका मिथ्यात्वी ० o ० प्रकृति आहारक २, तीर्थंकर १ संज्वलन ४, पुरुषवेद १ नवतत्त्वसंग्रहः साता १, यश १, उच्चगोत्र १, ज्ञानावरणीय ५, दर्श नावरण ४, अंतराय ५ एवं सर्व १७, नरकद्विक २, वैक्रियद्विक २, देवद्विक २ आयु शेष प्रकृति ८५ रही बन्ध-स्वामी ८ गुणस्थान सूक्ष्मपराय गुणस्थानवाला असंज्ञी तिर्यंच पर्याप्त संज्ञ असंज्ञी पंचेन्द्रिय बाद केंद्री पर्याप्त

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