Book Title: Navtattva Sangraha
Author(s): Vijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
Publisher: Samyagyan Pracharak Samiti

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Page 499
________________ ४६४ नवतत्त्वसंग्रहः (१७३) अथ उत्तर प्रकृतिना उत्कृष्ट प्रदेशबंधयंत्र शतककर्मग्रन्थात् ज्ञानावरणीय ५, दर्शन० ४, साता० १, यश १, उच्च गोत्र १, अंतराय ५ १० गुणस्थानवर्ती अप्रत्याख्यान ४ ४ गुणस्थाने प्रत्याख्यान ४ देशविरति पुरुषवेद १, संज्वलन ४ ९ मे गुणस्थाने शुभ विहायगति १, मनुष्य-आयु १, देव-आयु १, देवगति १, सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि देवानुपूर्वी १, सुभग १, सुस्वर १, आदेय १, वैक्रियद्विक २, समचतुरस्र १, असाता० १, वज्रऋषभ १ एवं सर्व १३ निद्रा १, प्रचला १, हास्य आदि षट् ६, तीर्थकर १ अविरतिसम्यग्दृष्टि आहारकद्विक २ अप्रमत्त ७ तथा ८ मे वाला शेष ६६ प्रकृति मिथ्यात्वी (१७४) अथ जघन्यप्रदेशबन्धस्वामियन्त्रम् आहारकद्विक २ अप्रमत्त यति नरकत्रिक ३, देव-आयु १ असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जघन्य योगी देवद्विक २, वैक्रियद्विक २, जिननाम १ मिथ्यात्वने सन्मुख सम्यग्दृष्टि शेष १०९ प्रकृति आपणे भवके प्रथम समय सूक्ष्म निगोद __ अपर्याप्त जघन्य योगी (१७५) अथ सात बोलकी (१७६) जीव बंधवर्गणा ग्रहे तिसका 'अल्पबहुत्व कर्मपणे वांटा योगस्थान स्तोक १ कर्म वांटय प्रकृतिभेद असंख्य २ स्तोक १ स्थितिभेद असंख्य३ वि२ स्थिति बंधाध्यवसाय असंख्य ४ गोत्र तुल्य २ अनुभागस्थानक असंख्य ५ अंतराय कर्मप्रदेश अनंत ६ ज्ञाना० १, दर्शना० १, वि ३ तुल्य रसच्छेद अनत ७ | मोहनीय वेदनीय वि५ (१७७) बंधभेद ४ प्रकृतिबंध स्थितिबंध अनुभागबंध प्रदेशबंध अर्थ स्वभाव काल दल वाडे दृष्टांत वात आदि शमन मास, अर्ध मास आदि । षंड, शर्करा आदि | तोला, दो तोला कारण योग कषाय कषाय योग भेदसंख्या असंख्य असंख्य अनंत अनंत प्रमाण | श्रेणिके असंख्य भाग | श्रेणिके असंख्य भाग | अनंते अनंते आयु नाम वि३ वि४

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