Book Title: Navtattva Sangraha
Author(s): Vijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
Publisher: Samyagyan Pracharak Samiti

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Page 503
________________ ४६८ पुरुषवेद नवतत्त्वसंग्रहः कषाय कषाये करी परवश चित्त थकउ सोला कषाय बांधे हास्य उत्प्रासन १, कंदर्प २, प्रहास ३, उपहास ४, शी(अश्ली)ल घणा बोले ५, दीन वचन बोले ६ रति देश आदि देखनेमे औत्सुक्य १, चित्राम, रमण, खेलन २, परचित्तावर्जन ३ अरति ____ पापशील १, परकीर्तिनाशन २, खोटी वस्तुमे उत्साह ३ । शोक परशोकप्रगटकरण १, आपको शोच उपजावनी २, रोणा ३ भय आप भय करणा १, परकू भय करणा २, त्रास देणी ३, निर्दय ४ जुगुप्सा चतुर्विध संघनी जुगुप्सा करे १, सदाचारजुगुप्सा २, समुच्चयजुगुप्सा ३ स्त्रीवेद | ईर्ष्या १, विषाद २, गृद्धिपणा ३, मृषावाद ४, वक्रता ५, परस्त्रीगमनरक्त ६ स्वदारसन्तोष १, अनीर्ष्या २, मंद कषाय ३, अवक्रचारी ४ नपुंसकवेद अनंगसेवी १, तीव्र कषाय २, तीव्र काम ३, पाषंडी ४, स्त्रीका व्रत षंडे ५ नरक- महारंभे १, महापरिग्रह २, पंचेन्द्रियवध ३, मांसाहार ४, रौद्र ध्यान ५, मिथ्यात्व ६, अनंतानुआयु | बंधि कषाय ७, कृष्ण, नील, कापोत लेश्या ८, अनृत भाषण ९, परद्रव्यांपहरण १०, वार वार | मैथुनसेवन ११, इन्द्रियवशवर्ती १२, अनुग्रह रहित १३, स्थिर घणा काल लग रोस राखणहार १४ तिर्यंच- ___ गूढ हृदय १, शठ बोले मधुर, अंदर दारुण २, शल्य सहित ३, उन्मार्गदेशक ४, आयु | सत्मार्गनाशक ५, आर्त ध्यानी ६, माया ७, आरंभ ८, लोभी ९, शीलव्रतमें अतिचार १०, | अप्रत्याख्यान कषाय ११, तीन अधम लेश्या १२ मनुष्य- मध्यम गुण १, अल्प परिग्रह २, अल्प परिग्रह (?) ३, मार्दव ४, आर्जव स्वभाव ५, धर्म आयु | ध्याननो रागी ६, प्रत्याख्यान कषाय ७, संविभागनो करणहार ८, देव, गुरुना पूजक ९, प्रिय बोले १० सुंखे (?) प्रज्ञापनीया ११, लोकव्यवहारमें मध्यम परिणाम स्वभावे पतली कषाय १२, क्षमावान् १३ अविरतिसम्यग्दृष्टि १, देशविरति २, सरागसंयम ३, बालतपस्वी ४, अकामनिर्जरा ५, भले आयु | साथ प्रीति ६, धर्मश्रवणशीलता ७, पात्रमें दान देणा ८, अवक्तव्य सामायिक अजाण पणे सामायिक करे ९ माया रहित १, गारव तीनसे रहित २, संसारभीरु ३, क्षमा, मार्दव, आर्जव आदि गुणे नाम सहित ४ अशुभ ___मायावी १, गौरववान् २, उत्कट क्रोध आदि परिणाम ३, परकू विप्रतारण ४, मिथ्यात्व ५, | पैशुन्य ६, चल चित्त ७, सुवर्ण आदिकमें षोट मिलावे ८, कूडी साख ९, वर्ण, रस, गंध स्पर्श | अन्यथाकरण १०, अंगोपांगनउ छेदन करणा ११, यंत्र पंजर वणावे १२, कूडा तोला, कूडा मापा १३, आपणी प्रशंसा १४, पांच आश्रवना सेवनहार १५, महारंभ परिग्रह १६, कठोर भाषी १७ जूठ बोले १८, मुखरी १९ आक्रोश करे २०, आगलेके सुभागका नाश करणा २१, कार्मण करे २२, कुतूहली २३, चैत्याश्रयबिंबका नाश करणहार २४, चैत्येषु अंगराग २५, परकी हांसी २६, परकू विडंबना करणी २७, वेश्या आदिकू अलंकार देणा २८, वनमे आग लगावे २९, देवताना मिस | करी गंध आदि चोरे ३०, तीव्र कषाय ३१ देव शुभ । नाम कर्म

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