Book Title: Navtattva Sangraha
Author(s): Vijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
Publisher: Samyagyan Pracharak Samiti

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Page 505
________________ ४७० नाम उच्च गोत्र नवतत्त्वसंग्रहः शुभ ___ संसारभीरु १, अप्रमादी २, शुद्ध स्वभाव ३, क्षमावान् ४, सधर्मीना स्वागतकारक ५, परोपकारी ६, सारका ग्रहणहार ७ गुण बोले यथावत् १, दूषणमे उदासीन २, अष्ट मद रहित ३, आप ज्ञान पठन करे ४, गोत्र अवराकू पढावे ५, बुद्धि थोडी होवे तो पढणेवालोकी बहुमानसे अनुमोदन करे ६, जिन, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, चैत्य, साधु, गुणगरिष्ठ तेहने विषे भक्ति, बहुमानकारक ७ नीच परनिन्दा १, अपहास २, सत्गुणलोपन ३, असत्दोषकथन ४, आपणी कीर्ति वांछे ५, आपणा दोष छिपावे ६, अष्ट मदका कारक ७ अंतराय | तीर्थंकरकी पूजाका विघ्न करे १, हिंसा आदि ५ आश्रव सेवे २, रात्रिभोजन आदिक करे ३, कर्म ज्ञान, दर्शन, चारित्रको विघ्न करे ४, साधु प्रत्ये देता भात, पाणी, उपाश्रय, उपगरण, भेषज आदि निवारे ५, अन्य प्राणीने दान, लाभ, भोग, परिभोगमे विघ्न करे ६, मंत्र आदिक करी अनेराना वीर्य हरे ७, वध, बंधन करे ८, छेदन, भेदन करे जीवाने ९, इन्द्रिय हणे १० इति अष्ट कर्मना बंधकारण संपूर्ण. अथ पंचसंग्रह थकी युगपत् बंधहेतु लिख्यते पृथक् पृथक् गुणस्थानोपरि पांच प्रकारे मिथ्यात्व, एकैक मिथ्यात्वमे छ छ काया, एवं ३० हुइ. एकैक इन्द्रिय व्यापार पूर्वोक्त ३० मे एवं १५० हुइ. ऐसे ही एकैक युग्म साथ देढसै दोढसै, एवं ३०० होइ. एवं एकैक वेदसे तीन सो तीन सो, एवं ९०० हुए. एवं एकैक क्रोध आदि च्यारि कषायसे नव(से) नवसे, एवं ३६०० हुइ. एवं दश योगसे ३६०० कू गुण्या ३६००० होइ. ५४६४५४२४३४४४१०. मिथ्यात्व १, काय १, इन्द्रिय १, एक युगल २, तीनो वेदमेसू एक वेद १, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान, संज्वलनका क्रोध आदि त्रिक कोइ एक, एवं ९, दश योगमेसूं एक व्यापार योगका, एवं दश बंधहेतुसे ३६००० भंग हुइ. दस तो पूर्वोक्त अने भय युक्त कीये ११ हुइ. तिसकी विभाषा पूर्ववत् करणेसे ३६००० हुइ. एवं जुगुप्सा प्रक्षेपे पिण ३६०००. अथवा अनंतानुबंधी प्रक्षेपणे ते ११ हुइ अने योग १३ जानने तिहां भंग ४६८००. अथवा कायद्वयवधसंयोग प्रक्षेपणे ते ग्यारे संयोग वियोग ते पूर्ववत् लब्ध भंगा ९००००. एवं सर्व २०८८००, दो लाख अठ्यासी सै. एकादश बंधहेतु करी इतने भंग हुइ. दस तो पूर्वोक्त संयोग अने भय, जुगुप्सा प्रक्षेपे १२ संयोग हुइ, तिसके भंग ३६०००. अथवा भय अनंतानुबंधी युक्त करे योग तिहां १३ जानने तदा भंग ४६८००. जुगुप्सा, अनंतानुबंधी प्रक्षेपे पिण भंग ४६८००. अथवा त्रिकायवध प्रक्षेपणे ते १२ होय है ते पिण वीस भांगा होय है तदा पूर्ववत् लब्ध भंगा १२००००. भय द्विकायवध क्षेपते लब्ध भंग पूर्ववत् ९००००. एवं जुगुप्सा द्विकायवध क्षेपे पिण भंगा ९००००. अनंतानुबंधी द्विकायवध क्षेपे पूर्ववत् लब्ध भंगा ११७०००, एवं सर्व बारे समुदायके हेतु ५४६६०० हुइ.

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