Book Title: Navtattva Sangraha
Author(s): Vijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
Publisher: Samyagyan Pracharak Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 493
________________ वि६ बेइंद्री बेइंद्री ४५८ नवतत्त्वसंग्रहः (१६७) अथ स्थितिबंध अल्पबहुत्व संख्या यति सूक्ष्म संपराय जघन्य | स्तो १ | चउरिंद्री अपर्याप्त जघन्य | वि १९ बादर एकेंद्री पर्याप्त जघन्य | असं २ __ चउरिंद्री अपर्याप्त उत्कृष्ट । वि २० सूक्ष्म एकेंद्री पर्याप्त जघन्य | वि३ | चरिद्री पर्याप्त उत्कृष्ट वि २१ बादर एकेंद्री अपर्याप्त जघन्य । वि ४ असंज्ञी पंचेंद्री पर्याप्त जघन्य | सं २२ सूक्ष्म एकेंद्री अपर्याप्त जघन्य | वि५ असंज्ञी पंद्री अपर्याप्त जघन्य | वि २३ सूक्ष्म एकेंद्री अपर्याप्त उत्कृष्ट | असंज्ञी पंचेंद्री अपर्याप्त उत्कृष्ट | वि २४ बादर एकेंद्री अपर्याप्त उत्कृष्ट | वि ७ असंज्ञी पंचेंद्री पर्याप्त उत्कृष्ट | वि २५ सूक्ष्म एकेंद्री पर्याप्त उत्कृष्ट | वि८ यतिना उत्कृष्ट स्थितिबंध | सं २६ बादर एकेंद्री पर्याप्त उत्कृष्ट | वि ९| देशविरति जघन्य स्थितिबंध | सं २७ पर्याप्त जघन्य | सं १० देशविरति उत्कृष्ट स्थितिबंध सं २८ बेइंद्री अपर्याप्त जघन्य | वि ११ अविरतिसम्यग्दृष्टि पर्याप्त जघन्य । | सं २९ बेइंद्री अपर्याप्त उत्कृष्ट | वि १२] अविरतिसम्यग्दृष्टि अपर्याप्त जघन्य सं ३० पर्याप्त उत्कृष्ट | वि १३/ | अविरतिसम्यग्दृष्टि अपर्याप्त उत्कृष्ट | सं३१ तेइंद्री पर्याप्त जघन्य | वि १४ | अविरतिसम्यग्दृष्टि पर्याप्त उत्कृष्ट | सं ३२ अपर्याप्त जघन्य | वि १५ संज्ञी पर्याप्त जघन्य तेइंद्री अपर्याप्त उत्कृष्ट | वि १६ संज्ञी अपर्याप्त जघन्य तेइंद्री पर्याप्त उत्कृष्ट | वि १७|| संज्ञी अपर्याप्त उत्कृष्ट | सं ३५ चरिंद्री पर्याप्त जघन्य | वि १८/ संज्ञी पर्याप्त उत्कृष्ट (१६८) अथ ४१ प्रकृतिका अबंध कालयंत्र प्रकृति अबंधकाल नरकत्रिक ३, तिर्यंचत्रिक ३, उद्योत १ एवं सर्व ७ १६३ सागरोपम, ४ पल्योपम अधिक मनुष्य-७ भव अधिक जुगलियाने थावरचतुष्क ४, एकेंद्री १, विकलत्रिक ३, आतप १ | १८५ सागरोपम, ४ पल्योपम मनुष्यभव अधिक नारकने प्रथम संहनन वर्जी ५ संहनन, प्रथम संस्थान | १३२ सागरोपम मनुष्य-भवे अधिक यति-भव वर्जी ५ संस्थान, अशुभ गति १, अनंतानुबंधि ४, देड पंचेंद्रीने अबंधस्थिति मिथ्यात्व १, दुर्भग १, दु:स्वर १, अनादेय १, थीणद्धित्रिक ३, नीच गोत्र १, नपुंसकवेद १, स्त्रीवेद १ अथ १६३।१८५ कह्या ते पूरवाना ठाम लिख्यते. विजय आदिकने विषय दो २ वार तीन वार अच्युतने विषय १३२, एक ग्रैवेयकने विषे १६३, इम तमाने विषे १८५ तेइंद्री सं ३३ स ३४ | सं३६

Loading...

Page Navigation
1 ... 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546