Book Title: Navtattva Sangraha
Author(s): Vijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
Publisher: Samyagyan Pracharak Samiti

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Page 487
________________ नवतत्त्वसंग्रहः अथ सामान्य तिर्यंच रचना गुणस्थान ४ आदिके सत्ताप्रकृति १४७, तीर्थंकर १ नही. पहिले १४७, दूजे १४७, तीजे १४७, चौथे १४७, मनुष्य रचना गुणस्थान १४ वत्. ४५२ अथ सौधर्म आदि सहस्रार पर्यंत देवलोक रचना गुणस्थान ४, सत्ताप्रकृति १४७, नरकआयु नास्ति. अथ आनत आदि नव ग्रैवेयक पर्यंत सत्ता० १४६, नरक १, तिर्यंच - आयु नही. तीर्थंकर १ उतारे १ मि १४६ तीर्थंकर १ उतारे २ सा १४६ ३ मि १४६ ४ अ १४७ १ मि १४६ o २ सा १४६ ० ३ मि १४६ ० ४ अ १४६ o o ० तीर्थकर १ मिले १ मि १४५ २ सा १४५ ४ अ १४६ १ मि १४५ २ सा १४५ ३ मि १४५ ४ अ १४६ १३ स ८५ o o तीर्थंकर १ मिले अथ भवनपति, व्यंतर १, जोतिषि १, सर्व देवी १, रचना गुणस्थान ४ आदिके सत्ताप्रकृति १४६ अस्ति. तीर्थंकर १, नरक - आयु १ एवं २ नास्ति. अथ पृथ्वीकाय १, अप्काय १, वनस्पतिकाय रचना एकेंद्री विकलत्रय रचनावत्. अथ तेजोवायुकाय रचना गुणस्थान १ - मिथ्यात्व १, सत्ताप्रकृति १४४ है. तीर्थंकर १, देव - आयु १, मनुष्य-आयु १, नरक - आयु १ एवं ४ नास्ति अथ त्रसकाय रचना गुणस्थानवत्. अथ मनोयोगचतुष्क ४, वचनयोगचतुष्क ४, औदारिककाययोग १ एवं योग ९ गुणस्थान रचनावत्. अथ वैक्रियकाययोग रचना गुणस्थान ४ आदिके सत्ताप्रकृति १४८, पहिले १४८, दूजे १४७, तीजे १४७, चौथे १४८. अथ ५ अनुत्तर रचना गुणस्थान १ – चौथा, सत्ता० अथ एकेंद्री विकलत्रय रचना गुणस्थान २ आदिके सत्ताप्रकृति १४५ अस्ति. तीर्थंकर १, नरक - आयु १, देव- आयु १ नही. अथ पंचेद्री रचना गुणस्थानवत् १ मि १४५ २ सा १४५ अथ आहारक, आहारक मिश्र रचना गुणस्थान १ - प्रमत्त, सत्ताप्रकृति १४८ सर्वे. अथ औदारिकमिश्रयोग रचना गुणस्थान ४- पहिला, दूजा, चौथा, तेरमा, सत्ता० १४६ अस्ति. देव-आयु १. नरक - आयु १ नही. १४६, नरक- आयु १, तिर्यंच - आयु १ एवं २ नही. तीर्थंकर १ उतारे o ० तीर्थंकर १ मिले. सातमे गुणस्थानकी नवमे गुण० की, दशमे गुण० की, बारमे गुण की एवं ६१ की विच्छित्ति. शेष ८५ रही तेरमे गुणस्थानमे.

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