Book Title: Navtattva Sangraha
Author(s): Vijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
Publisher: Samyagyan Pracharak Samiti

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Page 473
________________ ४३८ नवतत्त्वसंग्रहः ____अथ वैक्रिय योग रचना गुणस्थान ४ आदिके उदयप्रकृति ८६ है. ज्ञानावरण ५, दर्शना० ६ थीणद्धित्रिक विना, वेदनीय २, मोहनीय २८, अंतराय ५, गोत्र २, देवगति १, देव-आयु १, वैक्रियद्विक २, पंचेंद्री १, तैजस १, कार्मण १, समचतुरस्र १, हुंडक १, प्रशस्त गति १, अप्रशस्त गति १, वर्णचतुष्क ४, अगुरुलघु १, पराघात १, उपघात १, उच्छ्वास १, निर्माण १, अथिर १, अशुभ १, त्रसदशक १०, दुःस्वर १, आनेदय १, अयश १, नरकगति १, नरकआयु १, दुर्भग १ एवं ८६ अस्ति, शेष ३६ नास्ति. १ मि | ८४ मिश्रमोह०१, सम्यक्त्वमोह०१ उतारे. मिथ्यात्व १ विच्छित्ति २ सा | ८३ | अनंतानुबंधि ४ विच्छित्ति. ३, मि | ८० मिश्रमोहनीय १ मिले. मिश्रमोहनीय १ विच्छित्ति ४] अ ८० सम्यक्त्वमोह० मिले. __ अथ वैक्रियमिश्र योग रचना गुणस्थान ३-प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, उदयप्रकृति ७९ अस्ति. पूर्वोक्त ८६ तिण मध्ये मिश्रमोह० १, पराघात १, उच्छ्वास १, सुस्वर १, दुःस्वर १, प्रशस्त गति १, अप्रशस्त गति १ एवं ७ नास्ति. १ मि | ७८ सम्यक्त्वमोह० १ उतारी. मिथ्यात्व १ विच्छित्ति २ सा | ६९ नरकगति १, नरक-आयु १, नीच गोत्र १, हुंडक १, नपुंसक १, दुर्भग १, अनादेय १, अयश १ एवं ८ उतारे. अनंता० ४, स्त्रीवेद १ एवं ५ विच्छित्ति. ७३ सम्यक्त्वमोह० १, नरकगति १, नरक-आयु १, नीच गोत्र १, हुंडक १, नपुंसकवेद १, दुर्भग १, अनादेय १, अयश १ एवं ९ मिले. ___अथ आहारक योग रचना गुणस्थान १-प्रमत्त, उदयप्रकृति ६१ अस्ति. मिथ्यात्व १, मिश्रमोह० १, आतप १, सूक्ष्मत्रिक ३, अनंता० ४, एकेंद्री १, थावर १, विकलत्रय ३, अप्रत्या० ४, वैक्रियद्विक २, देवगति १, देव-आयु १, नरक-गति १, नरक-आयु १, आनुपूर्वी ४, दुर्भग १, अनादेय १, अयश १, प्रत्या० ४, तिर्यंच-आयु १, नीच गोत्र १, तिर्यंच गति १, उद्योत १, तीर्थंकर १ एवं ४१ नास्ति, शेष ६१ षष्ठ गुणस्थान अस्ति. तिण मध्ये थीणद्धित्रिक ३, नपुंसकवेद १, स्त्रीवेद १, अप्रशस्त गति १, दुःस्वर १, संहनन ६, औदारिकद्विक २, संस्थान ५ समचतुरस्र विना एवं २० नास्ति, शेष ६१ अस्ति. अथ आहारकमिश्र योग रचना गुणस्थान १-प्रमत्त, उदयप्रकृति ५७ अस्ति. पूर्वोक्त ६१ तिण मध्ये सुस्वर १, पराघात १, उच्छ्वास १, प्रशस्त गति १ एवं ४ नही. __ अथ कार्मण योग रचना गुणस्थान ४-पहिला, दूजा, चौथा, तेरमा, उदयप्रकृति ८९ अस्ति. सुस्वर १, दुःस्वर १, प्रशस्त गति १, अप्रशस्त गति १, प्रत्येक १, साधारण १, आहारकद्विक २, औदारिकद्विक २, मिश्रमोह० १, उपघात १, पराघात १, उच्छ्वास १, आतप १, उद्योत १, वैक्रियद्विक २, थीणद्धित्रिक ३, संस्थान ६, संहनन ६ एवं ३३ नास्ति. | |

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