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नवतत्त्वसंग्रहः जैसे क्षुल्लक प्रतरका स्वरूप है तैसी स्थापना, जैसा एह प्रतर है जैसा ही इसके ऊपर दूजा प्रतर है. इन दोनों का नाम 'क्षुल्लक प्रतर' है. इनके मध्यके
आठ प्रदेशाकी 'रुचक' संज्ञा है. इनसे १० दिशा. (८८) श्रीभगवत्यां १०मे शते प्रथम उद्देशे, ११ मे शते दसमे उद्देशे, षोडशमे शते ८ मे उद्देशे
जीव । देश |चार चार ऊर्ध्व | अधो अधो | तिर्यग| ऊर्ध्व लोकना| दिग | ऊर्ध्व | अधोअजीव | प्रदेश | दिग् | विदिग्| दिग् | दिग् लोक | लोक | लोक| १प्रदे-चरमां- | लोक-| लोक- द्रव्यम्
शमे | त ४ | चरमांत चरमांत
वीस बोल-दिशा १०, लोक ३, प्रदेश १, चरमांत ६ एवं
सर्व २०
जीव
|
अनंत
०
०
०
अनंत | अनंत | अनंत |
०
०
०
७ बोलमे अनंते, १३ बोलमे शून्य
एकेन्द्रिय | देश | ३।३| --| → | ए | व | म्
→ | २० बोलमे घणे एके
न्द्रियांके घणे देश ३३
३३ | ३३ | ३३ | ३३ | ३३
२० बोलमें भंग ३३
एकेन्द्रिय | प्रदेश | ३।३| ३३ | | ३३ | ३३ बेंद्री, तेइंद्री देश |३।३||
चौरिंद्री, पंचेंद्री.
११
७ बोलमे ३३, १० बो
लमे ११।१३।३३, बोल ३मे ११॥३३.
प्रदेश | ३।३
३३
बें., तें., चौ., पं.
300:":
७ बोलमे ३३, बोल १३ मे १३॥३३,
३३
अनिन्द्रिय | देश |३।३| ११ | ११ | ११ |३३ | ३३
११ | ८ मे ३३ बोल, मे
११।१३।३३, ४ मे १३ |१३।३३, एकमें ११।१३
एकमें ११।३३ अनिन्द्रिय प्रदेश ३।३/ ३३ | ३३
८ मे ३३ बोल, ११मे
१३३३३,
१मे ११।१३।३३ अजीव रूपी ४
.४ ४ ४ २० मे चार अजीव | अ-|७| ७ | ७. ६काल ७ | ७
१२ बोलमे ७, विना
८ बोलमे ६. जिहां ११ लिख्ये है तिहां प्रथम एकातो एक जीव परला एका देशके कोठेमे एक देश अने प्रदेशके कोठेमे एक प्रदेश. तीनका अंक है जहां तिहां बहुवचन जानना. इति अलम्.
24 Mw
रूपी