Book Title: Navtattva Sangraha
Author(s): Vijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
Publisher: Samyagyan Pracharak Samiti
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३४६
नवतत्त्वसंग्रहः
एह एकविंशति भंग न्यायेन
१२८५५००२६३१०४९२१५
कर १ करा २ अनु ३ कर । करा ४| वा करा अनु ५ कार अनु ६ काका अनु ७
सप्त सप्त गुणा ४९ भंगी भवंति
42 | एकसो सैतालीस १४७ भंगी न्यायेन । 441
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२२०
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| १२ |
४२५
९२४
एकविंशतिभङ्गाः-प्रथमव्रते एकविंशतिभङ्गास्ततो द्विकादिव्रतसंयोगे द्वाविंशतिगुणितं एकविंशतिप्रक्षेपक्रमेण तावद् गन्तव्यं यावदेकादशवेलायां द्वादशव्रतसंयोगे भङ्गसङ्ख्या ।
एकोनपञ्चाशद् भङ्गाः-प्रथमव्रते एकोनपञ्चाशद् भङ्गास्ततो द्विकादिव्रतसंयोगे पञ्चाशद्गुणितं एकोनपञ्चाशत्प्रक्षेपक्रमेण तावद् ।

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