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नवतत्त्वसंग्रहः अनं०पज्जत्तगा ४ ए चार उद्देशे एक सरीषे है. एवं सर्व उद्देशो १० हूये.
अथ अचरमना ११ मा उद्देशा लिख्यते-मनुष्य वर्जी २३ दंडके आयु वर्जी पापकर्म आदि ८ आश्री सर्व बोला मे १।२ भांगा. आयु आश्री नरक १, तिर्यंच २, देव ३ मे ११३ भंग मिश्रदृष्टिमे भंग ३ तीजा. पृथ्वी १, अप २, वनस्पति ३, तेजोलेश्यीमे ३ तीजा भंग. विगलेंद्रीमे ११३ भंग सम्यक्त्व १, ज्ञान आदि ३ ए ४ मे ३ तीजा भंग, मनुष्य अचरममे अलेश्यी १, केवली २, अयोगी ३ ए ३ नही, शेष बोल ४३ मे जहां चौथा भंग है सो नही कहना और सर्व प्रथम उद्देशवत् इति बंध अलम्.
(१५८) (अतीतादि आश्री भंग) | (१५९) (भव आश्री भंग) ___ भंग | अतीत | वर्तमान | अनागत | घणे भव अपेक्षा | एक भव अपेक्षा | बं
श्रेणिथी गिर | कति समये उपशांत
फेर ११ मे पूर्व भवे ११ मे, वर्त- | सयोगीने छेहले ___ माने क्षीणमोह । समये पूर्व भवे ११ मे, वर्त- | ११ मे से गिर फिर मान नही, आगे होगा ११/ श्रेणि पावे नही
- १४ मे गुणस्थाने उपशांत पहिले ही उपशांत मोहके पाया है
प्रथम समये क्षपकश्रेणि चढ्या, शून्य उपशम कदे नही भव्य मोक्षार्ह | १० मे गुणस्थानवाळा
भव्य
ब
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सिद्ध
a.]
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अभव्य
मिथ्यादृष्टि वा
अभव्य
(१६०) संपरायके बंधके भंग 555
अभव्य वा भव्यक ____ | उपशांतमोह गुणस्थान ___ऽऽ।
भव्य
_____॥ऽ | क्षीणमोह आदिक एह दोनो यंत्र भगवतीजीके.