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३] मि ७०
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४१६
नवतत्त्वसंग्रहः तत् अपर्याप्ति रचना गुणस्थान ३-१।२।४, बंधप्रकृति ९९ है. पूर्वोक्त तिर्यंचायु अने मनुष्यायु एवं २ नास्ति. पहिले, दूजे चौथे पर्याप्तवत्. १ मि | ९८ | तीर्थंकर १ उतारे. मिथ्यात्व १, हुंड १, नपुंसक १, छेवट्ठा १ एवं ४ विच्छित्ति. २| सा | ९४ |
अनंतानुबंधी आदि २४ विच्छित्ति व्यौरा माघवतीके सास्वादनवत् ४] अ | ७१
तीर्थंकर १ मिले अथ आनत आदि ग्रैवेयक पर्यंत रचना गुणस्थान ४ आदिके बंधप्रकृति ९७ अस्ति. पूर्वोक्त १९ सनत्कुमार आदिवाली अने तिर्यंचत्रिक ३, उद्द्योत १ एवं २३ नही. तीसरे गुणस्थानकी रचना बहुश्रुतसे समज लेनि.
तीर्थंकर उतारे. मिथ्यात्व १, हंड १, नपुंसक १, छेवट्ठा १ एवं ४ विच्छित्ति. अनंतानुबंधी ४, स्त्यानगृद्धित्रिक ३, दुर्भग १, दुःस्वर १, अनादेय १, संस्थान ४ मध्यके, संहन ४ मध्यके, अप्रशस्त गति १, स्त्रीवेद १, नीच गोत्र १ सर्व २१
विच्छित्ति
मनुष्यायु १ उतारे ४ अ | ७२
मनुष्यायु १, तीर्थंकर १ एवं २ मिले. __ तत् अपर्याप्ति रचना ३ गुणस्थान-१।२।४, बंधप्रकृति ९६ है. पूर्वोक्त २३ अने मनुष्यायु १ एवं २४ नास्ति. मनुष्यायु घटा देना. पहिले ९५, दूजे ९१, चौथे ७१ है. ___ अथ पांच अनुत्तर रचना गुणस्थान १-चौथा, बंधप्रकृति ७२. पूर्वोक्त २३ तो आनत आदि रचनावाली अने मिथ्यात्व १, हुंड १, नपुंसक १, छेवट्ठा १, अनंतानुबंधी ४, स्त्यानगृद्धित्रिक ३, दुर्भग १, दुःस्वर १, अनादेय १, संस्थान ४ मध्यके, संहनन ४ मध्यके, अप्रशस्त गति १, स्त्रीवेद १, नीच गोत्र १ एवं ४८ नही.
तत् अपर्याप्तरचना मनुष्यायु १ नही. और सर्व पूर्वोक्तवत्.
अथ एकेन्द्रिय १, विकलत्रय ३, अपर्याप्ति रचना गुणस्थान २ आदिके बंधप्रकृति १०७ है. आहारकद्विक २, तीर्थंकर १, देवत्रिक ३, नरकत्रिक ३, वैक्रियद्विक २, मनुष्यायु १, तिर्यंचायु १ एवं १३ नास्ति. करण-अपर्याप्त. १ | मि | १०७ मिथ्यात्व १, हुंड १, नपुंसक १, छेवट्ठा १, एकेन्द्रिय १, थावर १, आतप १,
सूक्ष्म १, अपर्याप्त १, साधारण १, विकलत्रय ३ एवं १३ विच्छित्ति २ सा | ९४
अथ एकेन्द्रिय १, विकलत्रय ३ पर्याप्त रचना गुणस्थान १-मिथ्यात्व १, बंधप्रकृति १०९ है. पूर्वोक्त १०७, मनुष्यायु १, तिर्यंचायु १, ए दोइ अधिक वधी.
अथ एकेन्द्रिय, विकलत्रय लब्धि अपर्याप्त रचना गुणस्थान १-मि०, बंध १०९ पूर्वोक्त.
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